Micro Tale by A Best Indian Hindi writer Seema Garg Manjari
सीमा गर्ग मंजरी
मेरठ कैंट, उत्तर प्रदेश

लघुकथा – “असहाय”
“चम्पा! ओ चम्पा !! मै मन्दिर दीप जलाकर आती हूँ तब तक तू खाने की तैयारी कर। “चम्पा को आवाज देकर उसकी सासुमाँ पूजा की थाली लेकर बाहर निकल गई। सासु माँ तुलसी चौरे पर दीप जलाकर आती होगी। आते ही उन्हें गर्मागर्म स्वादिष्ट सब्जी चपाती परोस दूँगी। ऐसा सोच चम्पा जल्दी जल्दी हाथ चला रही थी। अचानक खेत से लौटे चम्पा के जेठ ने चम्पा से खाने की थाली लगाने को कहा। चम्पा बरामदे में बैठे अपने जेठ जी को खाने की थाली परोसने लगी। विधवा जवान चम्पा को आज घर में अकेली देखकर जेठ की दृष्टि में बदनीयती आ गयी। वो हाथ पकड़कर जबरदस्ती उसे अपनी ओर खींचने लगा। भयभीत हिरणी सी चम्पा बचाव के लिए हाथ पैर मारने लगी । पौरूष के दर्प से चूर उसने चम्पा का मुँह दबाया और कमरे की ओर धकेलने लगा। हाथ पैर मारती बेबस चम्पा की चीखें हलक में घुटकर रह गयी। तभी मन्दिर से लौटी चम्पा की सासु माँ ने भीतर आकर देखा तो अपने बेटे की काली करतूत देख उसके पैरों तले से जमीन निकल गई । क्रोध से उसका खून खौल उठा ।अँगारे सा चेहरा तमतमाने लगा। वो चूल्हे से जलती लकड़ी निकालकर दहाड़ती हुई आई और बोली कि -“रूपेश ! खबरदार अगर तूने मेरी बेटी को आँख उठाकर भी देखा। “”चुपचाप अभी बाहर निकल जा वरना मैं भूल जाऊँगी कि तू मेरा बेटा है। “रण-चण्डी बनी माँ का पहली बार ऐसा रौद्र रूप देख रूपेश चुपचाप बाहर निकल गया। पत्ते सी थर थर काँपती चम्पा सासु माँ के गले से लिपट गयी। चम्पा को सीने से लगाते हुए माँ ने कहा कि–” बेटी ! अब मुझे कुछ सोचना होगा, क्योंकि अब तेरी आबरू अपने ही घर में सुरक्षित नहीं रह गयी है। “”आने दे आज खेत से लौटकर तेरे पिताजी को। आज ही तेरे बापू से कहकर अच्छा सा रिश्ता देखकर तेरी विदाई का समय निश्चित करती हूँ। “सासु माँ की आँखों में बेटी सा प्रगाढ़ स्नेह देख असहाय चम्पा की आँखों से गंगा जमुना बहने लगी।


One Comment
बबीता वाधवानी
औरतो को ही औरतो की रक्षा करनी है आज। रणचण्डी बनकर ही सही। ये तो वाक्या था कि दोनो औरते होश में थी। रक्षा सम्भव हो गयी। धूर्त पुरूष अब बेहोश पहले करता है फिर हवस का शिकार बनाया है। औरत को तो हर कदम पर सचेत रहना है।