
Learning With Experts by Dr. Arti Singh Bhadauria, Sawai Madhopur, Rajasthan.
E-magazine, हर स्त्री एक “प्रेरणा” की ओर से शुरू किया गया Learning With Experts की कड़ी में, पत्रिका के social media मंच पर 26/मई 2021 को लेखन के क्षेत्र में अपनी जगह बनाने की कोशिश में लगे नए लेखकों को अपने ज्ञान एवं अनुभव से अनुग्रहित करने के लिए लाइव सेशन के माध्यम से हमारे साथ जुड़ी सवाई माधोपुर राजस्थान से डॉ. आरती सिंह भदौरिया जी।


आरती जी राजकीय स्नातकोत्तर उच्च महाविद्यालय, सवाई माधोपुर से सेवानिवृत्त हो वर्तमान में पूर्णतया साहित्य के क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं।
आरती जी की कलम के जादू से अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं, कई संस्थाओं की सदस्य के रूप में वह अग्रिम पदों पर निस्वार्थ भाव से प्रेरणा स्त्रोत की तरह सेवा करती रहती हैं। इन्होंने अपनी उत्कृष्ट लेखनी एवं शानदार प्रस्तुति तथा अतुलनीय व्यक्तित्व के आधार पर अनगिनत पुरस्कार एवं सम्मान प्राप्त कर अपना गौरवान्वित पद प्राप्त किया है।
हर स्त्री एक प्रेरणा के मंच पर आरती जी को अपने साथ बड़े ही भाव एवं प्रेम सहित पाकर हम हृदय तल से आभार एवं तृप्ति का अनुभव कर रहे हैं। -रमनदीप कौर
प्रस्तुत हैं इस विषय पर हुई चर्चा में से अर्जित विशेष बातों का संक्षिप विवरण :-
विषय:- कैसे करें रचनात्मक लेखन की शुरुआत
साहित्य में सर्जना कोई साधारण बात नहीं है। किसी भी साहित्यिक विधा में लेखन हेतु बौद्धिक व आत्मिक ज्ञान का होना आवश्यक है। सृजनात्मकता का विकास संभव है, परन्तु उसके लिए हमें नित्य नए मानसिक संक्रियाओं से गुजरने के लिए तत्पर रहना चाहिए। कल्पना शक्ति, तर्क शक्ति, विचार शक्ति और तार्किक चिंतना की शक्ति ही साहित्य सृजन के मूल में होता है । साहित्य की रचनाशीलता पूर्ण रूप से चिंतनशील स्वभाव व रचना पर निर्भर करता है, जिसमें श्रेणीबद्ध विचार किसी लक्ष्य या उद्देश्य की ओर अविराम गति से प्रवाहित होते हैं। साहित्य सृजन का मूल उद्देश्य होता है किसी समस्या का निदान करना या सामाजिक समस्याओं के निदान हेतु चिंतन द्वारा अपने तार्किक विचारों से लोगों को संतुष्ट करना I चिंतना की शक्ति ही भावोत्पत्ति का उत्कर्ष है । इस तरह यदि हम कहते है, कि हमारे मस्तिष्क में यह भाव उत्पन्न हो रहा है अर्थात् हमने उस विषय पर अमूर्त चिंतन किया है, जिसका परिणाम भाव के रूप में प्रस्फुटित हो रहा है।
रचनाधर्मिता के लिए हम जिन विषयों पर चिंतन करना चाहते हैं उसका पूर्वज्ञान आवश्यक है जिससे रचना में विषयवस्तु पर पकड़ बनाई जा सके, तथा संबंधित भाषा के व्याकरण की जानकारी हो।
प्रायः ऐसा देखा जाता है कि रचनाकार स्त्रीलिंग शब्दों के साथ पुलिंग क्रिया चिह्नों तथा कारक चिह्नों का प्रयोग करते हैं। यह व्याकरण की दृष्टि से बहुत बड़ा दोष माना जाता है। प्रायः लोग हिन्दी भाषा की रचना में विदेशज शब्दों का प्रयोग करते हैं, तथा कभी- कभी अंग्रेजी शब्दों का भी बहुलता से प्रयोग किया जाता है। यह भषिक दृष्टि से अनुचित है। हिन्दी साहित्य का विशालतम कोष अपने अथाह शब्द भंडार के साथ तत्सम् शब्दों को भी धारण किए हुए है, अतः इनका प्रयोग उचित होता है। साहित्यिक रचना हेतु हमें इन बातों पर अवश्य ध्यान देना चाहिए कि हम जिस साहित्यिक विधा में लेखन कर रहे हैं उसके नियमों व मानंदडों का अवश्य अनुशरण करें।
प्रायः मुक्त छंद के नाम पर हमें जो कविता प्रस्तुत की जाती है, उनमें काव्य का कोई भी गुण नहीं पाया जाता है। काव्य का अर्थ है संगीतात्मकता अर्थात् जिसमें गेयता हो। गति, लय, ताल, प्रवाह इत्यादि का लोप कविता का रूप नहीं माना जाना चाहिए। कविता में लालित्य एवं छंदों की उपस्थिति अनिवार्य है। इसी प्रकार हम प्रत्येक साहित्यिक विधाओं की रचना हेतु उसके मानक मानदंडों का अनुशरण तथा प्रयोग कर लेखन कौशल का विकास कर सकते हैं।
साहित्य सृजन के लिए संवेदनशील हृदय की आवश्यकता है, जिससे हम सामान्य घटना की भी गहरी अनुभूति कर एक उत्कृष्ट रचना का सृजन कर सकते हैं जो पाठकों के लिए हृदयस्पर्षी बन सके। रचना में भाव के साथ-साथ शब्दों का उचित प्रयोग एवं शब्द संयोग की भी आवश्यकता है, जो हमें अध्ययन से ही प्राप्त हो सकता है । बड़े साहित्यकारों की रचनाओं को ज्यादा- से -ज्यादा पढ़ना तथा उसका विवेचनात्मक विश्लेषण हमें उत्तम रचना लेखन में सहायता करती है। समालोचनात्मक प्रवृत्ति हमारी रचना को शुद्धता प्रदान करती है। रचनाकार का सबसे बड़ा गुण सत्यता को स्वीकार करने का होना चाहिए । अपनी रचना पर मिलने वाले आलोचनात्मक टिप्पपणी से हतोत्सहित न होकर उसे सुधारने की प्रवृत्ति तथा सहनशक्ति हो तभी हम लेखन के क्षेत्र में उन्नति कर सकते हैं। जैसे यदि हम अपनी कोई रचना अपने प्रारंभिक लेखन में लिखते हैं, तो कालांतर में उसे सुधार की आवश्यकता भी अनुभव की जा सकती है। शनैः -शनैः लेखन में शुद्धता और परिपक्वता आती है इसलिए पूर्व की कमियों को निकाल कर हम आनेवाली रचना को उत्कृष्टता प्रदान कर सकते हैंI हमारी यह प्रवृत्ति लेखन में सुधार लाती है जिसे रचनाशीलता का विकास माना जाता है। लेखन के लिए यह आवश्यक नहीं की हम सर्वदा क्लिष्ट और सर्वोत्तम शब्दों का ही चयन करें। हम साधारण शब्दों के चयन से सहज एवं सरल तरीके से भी रचना कर सकते हैं , किन्तु मेरा मानना है कि हम सर्वोत्तम पढ़ें और सर्वोत्तम लिखें। मनुष्य का मस्तिष्क एक दर्पण है, हम इसके समक्ष जैसी वस्तु रखते हैं, यह उसी का प्रतिबिंब बनाता है, तथा चेतना में उसका प्रत्यक्षीकरण इसी प्रतिबिंब के आधार पर तय होता है। स्मृतियां प्रतिबिंबों को धारण करती है, जिसके आधार पर काल्पनिकता को नया आयाम मिलता है। -सोमलता सुषमा, मानपुरा वैशाली, बिहार
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