

शरद पूर्णिमा की चांदनी के औषधीय गुण -विनीता अग्निहोत्री
भारत में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों को ध्यान से देखा जाए तो हम देख सकते हैं कि यह मनुष्य को प्रकृति से मिलने वाली सकारात्मक ऊर्जाओं से जोड़ने की बहुत सुंदर योजना है। हमारे धर्म ग्रंथों ने अधिकतर हमें उन्हीं चीजों से जुड़ा है जिससे मानवता का उद्धार हो और स्वस्थ एवं मंगलमय जीवन की प्राप्ति हो।आधुनिक युग में अक्सर लोग धार्मिक प्रक्रियाओं को अंधविश्वास आदि का नाम देकर छोड़ दिया करते हैं परंतु धर्म अधिकतर तर्क से परे विश्वास एवं आस्था से जुड़ा होता है। हमारे पूर्वजों ने हमें धर्म के नाम पर ही प्रकृति के विभिन्न हिस्सों से इसलिए बांधा है ताकि हम ईश्वर के प्रति अपनी आस्था को बनाए रखते हुए प्रकृति की इन सकारात्मक ऊर्जाओं को अपना सके।

ऐसे ही प्रकृति की एक सबसे खूबसूरत छवि हम सबके मन में बसी है जिसे हम चंद्रमा कहते हैं। यह चांद अपनी विभिन्न कलाओं से हमें प्रतिदिन आकर्षित करता रहता है। कभी बच्चों का मामा बनकर तो कभी ईद का चांद हो कर कभी करवा चौथ की भावनाओं में बहता हुआ चांद हमें अपने कई आयाम दिखाता है। यहां हम शरद पूर्णिमा के 30 किरणों वाले अति आकर्षक एवं औषधीय गुणों वाले चंद्रमा की बात करेंगे।
यूं तो यह त्योहार हिन्दू धर्म के अनुसार मनाया जाता है परंतु स्वस्थ जीवन के लिए यदि कोई औषधि अथवा बेहतर रास्ता मिलता है तो शायद उसे धर्म के दायरों से हटाकर मानव कल्याण के साथ जोड़ना बेहतर होगा।

शरद पूर्णिमा क्या है और कैसे इसका लाभ उठाया जाए आइए जानते हैं नई दिल्ली से विनीता अग्निहोत्री जी के शब्दों में
हमारे शास्त्रों में शरद पूर्णिमा का बहुत महत्व बताया गया है तदनुसार भारत में इस पर्व को बड़ी श्रद्धा भक्ति से मनाया जाता है। यह पर्व अश्वनी माह की पूर्णिमा के दिन मनाए जाने का विधान है, इसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। इस वर्ष यह 19 अक्टूबर को है।
यह पर्व माता लक्ष्मी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय लक्ष्मी जी का प्रकट्य इसी दिन हुआ था। यह भी मान्यता है कि भगवान शिव और पार्वती जी के पुत्र कार्कीतये का जन्म भी इस दिन ही हुआ था इसलिए इसे कहीं-कहीं कुमार पूर्णिमा भी कहते हैं। पूरे वर्ष में बस इसी दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है इसलिए चंद्रमा ही किरणे बहुत ही सुखदाई और रोग निवारक होती हैं।
शरद पूर्णिमा की रात में बहुत से परिवारों में खीर बनाकर खुले में ऐसे स्थान पर रखी जाती है कि चंद्रमा की किरणे उस पर सीधी पड़ सके। फिर सुबह भगवान जी का भोग लगाकर प्रसाद रूप में वितरण किया जाता है और परिवार के सभी सदस्य भी खाते हैं।
कहा जाता है की ऐसा करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है तथा अन्य रोग भी दूर होते हैं। आयुर्वेद में भी शरद पूर्णिमा का बहुत महत्व बताया गया है वैद्य लोग दमा और सांस सम्बन्धी रोगों की दवा इस दिन बनाकर निशुल्क मरीजों को देते हैं। तात्पर्य यही है कि शरद पूर्णिमा भी अन्य बड़े त्यौहार की तरह एक बड़ा त्यौहार है।
भारत में प्रत्येक प्रांत में इसे अपने-अपने तरीकों से मनाते हैं अनेक कहानियां शरद पूर्णिमा के बारे में उल्लेखित है। इस दिन रात्रि में चंद्रमा नीले रंग का दिखाई देता है, इसे देखने के लिए लोग रात्रि जागरण भी करते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं। अपनी मनोकामना की पूर्ति हेतु भी अनेक जगहों पर व्रत पूजा करते हैं इस दिन के व्रत का बहुत ही महत्व बताया जाता है क्योंकि यह वर्ष की सबसे बड़ी पूर्णिमा है यह भी कहा जाता है कि इस रात्रि में चंद्रमा 30 किरणों से अमृत वर्षा होती है जिससे रोग निवारण के साथ-साथ अन्य लाभ भी होते हैं जैसे आर्थिक सुदृढ़ता, सुख शांति आदि। इसलिए ऐसा कहना बिलकुल सही होगा कि अपने एवं अपने परिवार के स्वस्थ को ध्यान में रखते हुए हम सभी को बड़ी श्रद्धा भक्ति से शरद पूर्णिमा का उत्सव मनाना चाहिए और भावी प्रीढ़ी को भी इसका महत्व बताना चाहिए।
शरद की पूनम लाई चांदनी,
बरसे अमृत मोती।
रोग दोष सब दूर हो गए
खिले जब शीतल ज्योति।
सोलह कला से सजा चांद और
टीम टीम करेते तारे।
जिसपर पर पड़ी चांदनी ऐसी,
जन हैं वे बड़े निराले।
चमक उठा नभमंडल सारा,
महक उठी भू सारी।
भ्रमण कर रही लक्ष्मी मईया,
स्वागत करेती रजनी।
पाप मुक्त हो जाये मानव,
मिट जाए सब कजरी।
पूजा पाठ सब भक्त करो,
रोग मुक्त हो धरती।
शरद की पूनम लाई चांदनी,
बरसे अमृत मोती।
आप सब को चांद से शीतलता, सुभर्ता कोमलता तथा गौरव प्राप्त हो, इसी मंगल कामना के साथ “शरद पूर्णिमा की हार्दिक शुभकामनाएं” -विनीता अग्निहोत्री
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