

कल्पना कौशिक, गाजियाबाद
चंदा तेरे रूप अनेक…
सूर्य दिन के स्वामी प्रत्यक्ष नारायण हैं तो चंद्रमा राकेश यानी रात के ईश्वर हैं। चंद्रमा का प्रकाश सूर्य के समान तेजस्वी नहीं होता कि तारामंडल ही विलीन हो उठे लेकिन चंद्रमा एक भिन्न सरिता का वाहक है जिसमें अनेकानेक पौराणिक कथाएं, परम्पराएं, काव्य, व्रत एवं त्योहार प्रवाहित होते हैं।
भारतीय संस्कृति और चांद दोनों का बहुत गहरा संबंध है। हर उत्सव में चांद का अपना महत्व है। कुछ त्योहार तो बने ही चांद के ऊपर है, इन त्योहारों का अस्तित्व चांद के बिना पूरा नहीं हो सकता। चंद्रमा की पूर्णता होली के त्योहार की सूचक है तो उसकी अनुपस्थिति दीपों के पर्व का निमंत्रण देती है। भाद्रपद माह के शुक्लपक्ष की चतुर्थी का चांद गणेशजी के जन्मोत्सव के आरम्भ की सूचना देता है गणेश चतुर्थी एक त्योहार ऐसा भी हैं जिसमें चांद खलनायक है।
जी हां, गणेश चतुर्थी के दिन चांद को देखना निषिद्ध है। कहा जाता है कि इस दिन जिसने गलती से भी चांद के दीदार कर लिए, उस पर झूठा आरोप लगना तय है। इसलिए इस दिन लोग आसमान की तरफ नहीं ताकते। लेकिन संकष्टी चतुर्थी का वृत रखकर चांद का दर्शन इस दोष का निवारण करता है।वहीं यह चांद शरद पूर्णिमा पर अपनी चांदनी से अमृत की वर्षा कर जगत जीवों को तृप्त कर देता है।
शरद ऋतु के मौसम में आने वाला हिंदुओं का त्योहार शरद पूर्णिमा भी चांद के बिना अधूरा है। कहा जाता है कि इस दिन चांद की चांदनी में रखी गई खीर अमृत समान हो जाती है क्योंकि इस दिन चांद की चांदनी से अमृत बरसता है। देश भर में कई जगहों पर शरद पूर्णिमा का त्योहार धूमधाम से मनाया जाता है। कुछ लोग रात को चांदनी में खड़े होकर देव स्तुति करते हैं ताकि उन्हें ईश्वरीय सौगात मिल सके। ये भी कहा जाता है कि इस दिन चांदनी में सूंई में धागा डालने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
यही चंद्रमा करवाचौथ की रात्रि को सौभाग्यवती स्त्रियों के कठिन व्रत को पूर्णता प्रदान करता है। प्यार और दांपत्य जीवन के इस उत्सव में चांद का दिखना बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन विवाहिताएं पूरा दिन व्रत रखने के बाद चांद को देखकर ही अन्न जल ग्रहण करती हैं। शाम ढलते ही छतों, गलियों औऱ पार्कों में चांद का इंतजार होने लगता है। सजी धजी सुहागिनें चांद का इंतजार करती है। जैसे ही चांद निकलता है, उसे देखकर अर्ध्य दिया जाता है और पति के हाथों से पानी पिया जाता है। इस दिन चांद बहुत इंतजार कराता है। भारतीय संस्कृति के साथ साथ धर्म और ज्योतिष शास्त्र आदि में भी चंद्रमा एक महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। कवि, लेखक और प्रेमियों के लिए चांद एक प्रिय रूपक तो है ही। अनेक व्रत चंद्रमा के दर्शन पर पूर्ण होते हैं चांद के बिना भारत में प्रेम की परिकल्पना नहीं की जा सकती।
अधिकांशतः प्रेम काव्य लिखने वाले कवियों के काव्य का केंद्रबिंदु चंद्रमा ही होता है चाहे विरहणी की दशा का वर्णन हो या नायिका के मुख का। हर स्थान पर चंद्रमा से श्रेष्ठ कोई उपमा नहीं होती।
चंद्रमा को औषधियों का स्वामी भी माना गया है। चंद्रमा अमृत है वह जीवन के लिए संजीवनी है। चंद्रमा चराचर जगत और विशेषकर मानवीय संवेदनाओं, जीवनचर्या को मंगलमय बनाए रखने में सर्वाधिक योग कारक है। इसलिए प्रत्येक धर्मावलम्बी चंद्र को अपने धार्मिक व ज्योतिषीय जीवन में विशेष प्रधानता दिया करता है।
चंद्रमा को हमेशा से जीवन के गहरे अनुभवों या ज्ञान का प्रतीक माना जाता रहा है। इसलिए दुनिया में हर जगह चंद्रमा की रोशनी का रहस्यवाद या आध्यात्मिकता से गहरा संबंध रहा है। इस संबंध को दर्शाने के लिए ही आदियोगी शिव ने चंद्रमा के एक हिस्से को अपने सिर पर आभूषण के रूप में धारण किया था।


इसी श्रंखला में भारतवर्ष में चांद के साथ मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों को प्रेरणा के आंगन में शब्दों के तालमेल से मनाने के लिए हम लाए हैं यह ई- संकलन….
“त्योहारों के रंग प्रेरणा के संग” (चांद के साथ त्योहारों का रचनात्मक सफर)
Poster में दिए गए नियमों के अनुसार अपनी रचना तैयार कर तुरंत हमें e.magazine.prerna@gmail.com पर ईमेल कीजिए और बनी है इस ऐतिहासिक ई- संकलन का हिस्सा…