जब तक है जान!! (A war against Covid19)Part-2
आ अब लौट चलें: अगर हमें स्वस्थ रहना है तो ज़्यादा नहीं पर आज से करीब 20 वर्ष पहले की जीवनशैली को आज की समय सारणी मैं कुछ जगह देनी होगी। अचानक ही तीव्र गति से जीवन जीने की होड़ में हमने अपनी जड़ों को कमजोर कर लिया है हमारी जड़ें यानी हमारा इम्यून सिस्टम। यही कमजोर इम्यून सिस्टम की वजह से आज कोरोनावायरस महामारी का कारण बना है। ज़रा सोचिए, आने वाले समय में न जाने और कैसे-कैसे जीवाणु हमारा नाश करने के लिए खड़े हो जाएंगे। तो यह कहना गलत नहीं होगा कि वह दिन भी दूर नहीं जब मनुष्य सिर्फ मशीन की भांति निर्जीव सा, भावनाहीन और बीमारियों से ग्रस्त हो डरा हुआ सा यहां वहां भटकता नजर आएगा।
हमारी भारतीय पौराणिक जीवन शैली आज की मशीनी युग से कुछ कष्टदायक जरूर थी मगर जीवन से भरपूर थी। यदि अब भी समय रहते हम उनमें से कुछ चीजों को अपने जीवन का पुनः हिस्सा बना ले तो निश्चित तौर पर हम कोरोना या उसके जैसे किसी भी शत्रु का सामना करने के लिए सक्षम हो जाएंगे।
पिछले दिनों सोशल मीडिया पर अपने एक मित्र को धरती पर आसान लगाकर, अपने बच्चों के साथ बैठ मां के हाथ से चुल्लेह की बनी रोटी खाते की छवि देखी। सच जानिए भारतीय परंपरा का ये मन-मोहक दृश्य सीधा हृदय में उतर गया। इस चित्र के विवरण में उसने लिखा था कि, “ऐसा अनुभव फिर नहीं मिलेगा, जब सारा परिवार मिलजुल कर अनगिनत छुट्टियों का अनुभव ले पा रहा है। सबसे अच्छी बात यह है हम अपने बच्चों को अपने बचपन की जीवनशैली का जीवंत उदाहरण दर्शा रहे हैं।
यह बात हमारे बच्चों को शायद पता ही नहीं है। आज की युवा पीढ़ी ना तो झरनों और नहरों में नहाने का सुख जानती है और ना ही यूं ही नंगे पैर पहाड़ियों और टीलों के ऊपर चढ़ने का आनंद समझ सकती हैं। आज के बच्चे हर खेल बहुत सिस्टम के साथ खेलते हैं तरह-तरह के आधुनिक खिलौने या किसी विशेष खेल को खेलने के लिए अनगिनत उपकरणों अथवा संसाधनों, जैसे: क्रिकेट किट, बेसबॉल किट, साइकिलिंग किट आदि के बिना वे खेल खेलना नहीं चाहते। लॉक डाउन के इस समय में घर के परिसर में रहते हुए अपने बच्चों के साथ घर के बाहर आंगन में पिट्ठू, सितोलिया, छुपन छुपाई पोशांपा जैसे खेल फिर घर के भीतर चिड़िया उड़, अक्कड़ बक्कड़, सांप सीढ़ी आदि खेल आज भी जीवित हो सकते हैं। इनसे न केवल आपसी तालमेल बढ़ता है बल्कि खुल के हँसने और शारीरिक श्रम एवं खेल के नियमों का पालन आदि के सामंजस्य से शरीर स्वस्थ, मन शांत और स्वता ही इंसान का इम्यून सिस्टम भी ठीक रहता है।
अचानक क्यों बन गए ये वायरस खतरनाक: एक अध्ययन के अनुसार यदि हमारी शारीरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता ठीक हो तो हम किसी भी जीवाणु, वायरस का जम कर मुकाबला कर सकते हैं। पर आज एक छोटा सा जीवाणु/वायरस, जिसे हम अपनी नग्न आँखों से देख भी नहीं सकते हम पर हावी हो गया है। ऐसे में मात्र चंद दिन कुछ देसी नुस्खे अपनाने से कुछ खास फ़र्क नहीं पड़ेगा। अपितु हमें अपनी दिनचर्या में कुछ आदतों को निरंतर रूप में शामिल करना होगा। ऐसा कुछ करना होगा कि हमारे शरीर में इम्यूनिटी का स्तर निरंतर बना रहे। ये हैं कुछ आदतें जो हमें अपने आप में शामिल करनी है और कुछ त्यग्नी हैं। तो आइए देखते हैं अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखने के लिए कया करें और क्या ना करें:
ऐसा करें: | ऐसा नहीं करें: |
रोज सुबह एक घंटे धूप का सेवन करें। प्राणायाम के माध्यम से ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सीजन ग्रहण करें। अपने प्रभु का स्मरण करें। | कोई भी अधिक देर तक खाली पेट न रहे (उपवास न करें)। |
पानी जब भी पिएं गुनगुना पानी पिएं, गले को गीला रखने के लिए समय समय पर भाप लें। 1 लीटर पानी को 2लोंग, कुछ तुलसी के पत्तों के साथ उबाल कर रख लें, फिर दिन भर में थोड़ा थोड़ा कर पी लें। यह प्राकृतिक औषधि है, जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियंत्रित रखती है। | AC का प्रयोग न करें।ठंडे पानी का सेवन बिलकुल न करें। |
सरसों का तेल नाक में और नाभी में लगाएँ। यह भी एक पुरानी विधि है जिसके अंतर्गत नाक के भीतर नमी बनी रहती है और सरसों के तेल के गुणों से जीवाणुओं का ना केवल नाश होता है, बल्कि अतिरिक्त जीवाणु के प्रवेश भी रुक जाता है। | रात को दही ना खायें। |
घर में कपूर, गूगल और लौंग जला कर धूनी दें।प्रभु जी की आरती ऐसे ही करते हैं ना, पूजा भी और घर की स्वच्छता भी। | ठंडी चीजों जैसे आइसक्रीम आदि का सेवन बिलकुल ना करें। |
आधा चम्मच सोंठ हर सब्जी में पकते हुए डालें। सौंठ से शरीर की गर्मी बनी रहती है, और यह भी एक प्राकृतिक औषधि के रूप में शारीरिक तापमान को नियंत्रित रखता है। | किसी भी कीमत पर अपना मनोबल न खोएं। |
रात को सोने से पहले एक कप दूध में हल्दी डाल कर ज़रूर पिए। हल्दी एक सर्वव्यापी औषधिक वस्तु है, यह हमारे शरीर के सभी प्रकार के रोगों से लड़ने में सहायक है। | बहुत लंबी देर तक ना बैठें। थोड़ी थोड़ी देर में उठ कर चलें। |
आंवला का सेवन अचार, मुरब्बा, चूर्ण आदि किसी भी रूप में रोज़ करें। आंवला विटामिन सी व अन्य आवश्यक पोषक तत्वों का अद्भुत खजाना है इसके निरंतर सेवन का आनंद हमारा शरीर संपूर्ण जीवन तक उठाता है। | बिना सलाह से कोई भी दवा ना लें। |
सुबह की चाय में लौंग और अदरक डाल कर पिए। | बाहरी खाना, पैकेट वाला खाना बिल्कुल न खाएं। |
एक चम्मच चवनप्राश खाने कि फिर से आदत बना लें। | सिगरेट, शराब आदि के सेवन से परहेज करें। |
फल में सिर्फ संतरा ज्यादा से ज्यादा खाए। विटामिन सी से भरपूर संतरे के सेवन से सर्दी खांसी की शिकायत कम होगी। | किसी भी सार्वजनिक स्थान पर बिल्कुल नहीं जाएं। |
सही समय पर संतुलित भोजन खाएं। खाना ठीक से चबाकर खाएं। पूरी नींद लें। | अपनी, अपने परिवार की ओर अपने राष्ट्र को संकट में ना डालें। |
लॉक डाउन में किसने क्या सीखा: इस समय सभी जहां थे वहीं रुक गए हैं। कुछ लोग परिवार के साथ है तो कुछ अकेले ही कहीं अपने कमरे में ठहर गए हैं। स्थिति कोई भी हो लॉक डाउन का अपना ही अलग एक अनुभव हो रहा है सभी को इस स्थिति से कुछ न कुछ सीखने को मिल रहा है।
परिस्थिति के हिसाब से सीख भी अलग-अलग प्रकार की प्राप्त हो रही है।
अगर सब साथ हैं तो साथ को समझने का मौका मिल रहा है। वरना शायद आज के रोबोटिक जीवन में ऐसा संभव नहीं है। मजा तो सबके साथ ही आता है, चाहे बात खाना पकाने से लेकर खाने के जायके का मजा लेने कि हो या खाना खाते समय सब के साथ खाना ख़त्म हो जाने तक चलने वाली विभिन्न चर्चाएं हो। छोटे से लेकर बड़े तक सबकी उपस्थिति और उनकी कहती मीठी बातों का आनंद मोबाइल और टीवी में ढूंढने से भी नहीं मिल सकता।
जो अकेले रह रहे हैं, जो दूसरों के साथ रहने के सुख से वंचित हैं वे अपनी कमियों और खूबियों का विवरण कर सकते हैं इसके अलावा कुछ ऐसी चीजों को सीखने में अपना समय व्यतीत कर सकते हैं जिससे उनके जीवन में कुछ नया हो सके या वे जो कर रहे हैं उसमें और उपलब्धि मिल सके।
लॉक डाउन की इस अवधि में हमने यह सीखा कि चाहे घर के दरवाजे के बाहर सब कुछ रुका हो मगर घर के भीतर इंटरनेट के माध्यम से सब कुछ चल सकता है। स्कूलों के दरवाजे बंद ज़रूर है पर हर बच्चा आज घर से ऑनलाइन क्लासेज के रूप में क्लास रूम जैसे ही पढ़ाई कर पा रहा है। यह एक अनूठा अनुभव है।
वीडियो कॉलिंग और मोबाइल एप्लीकेशंस के माध्यम से नन्हे बच्चों से लेकर उच्चतम कक्षाओं की पढ़ाई सुचारू रूप से हो पा रही है। मुसीबत है तो बस इतनी सी है कि यदि घर में एक से अधिक बच्चे हैं तो सबके लिए अलग-अलग मोबाइल की आवश्यकता कैसे पूरी होगी।घर में ही क्लासरूम बनाने के लिए सबको अलग-अलग जगह बैठा कर व्यवस्थित रूप से शिक्षा का कार्यक्रम चलाना होगा। पर जो कुछ भी है मनुष्य हर हाल में हर स्थिति में कुछ नया सीखते हुए आगे बढ़ता रहता है।
आइए हम सब मिलकर इस भीषण महामारी से उभर कर उन्हें अपने जीवन में आगे बढ़ सके इस बात की मंगल कामना करते हैं और एक दूसरे के लिए भी प्रार्थना करते हैं कि…….
फिर एक दिन जब यह कहर खत्म हो जाएगा तब हम फिर अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलेंगे, फिर चाय की चुस्कीयों के सारे ढेरों गप्पे होंगी, फिर कपड़ों और गहनों पर चर्चाएं होंगी, फिर सरकार की नीतियों पर कटाक्ष होंगे, फिर सास-बहू की चुगलीयां शुरू होगी, फिर कहीं मुंह बनेंगे, कहीं लतीफे सजेंगे और हम हंसते मुस्कुराते हुए इस संकट के समय को पीछे छोड़ कर उभर आएंगे। जय हिन्द।।
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