जब तक है जान!! (A war against Covid19)Part-1
सारी दुनिया अपनी रफ्तार पर जिंदगी की गाड़ी चला रही थी। हर कोई इस बात से अनजान की दुनिया के किसी कोने में किसी जगह एक ऐसा जहर बन रहा है जो ना चाहते हुए भी हर एक को अपनी चपेट में लेता हुआ धरती पर हाहाकार मचाने वाला है। किसी को इस बात की खबर भी नहीं थी कि कल सुबह जब हम उठेंगे तो चारों तरफ मौत का पैगाम इस तरह दौड़ रहा होगा की दहशत हमारे दिलों दिमाग पर घर कर जाएगी। हम उस सजा का हिस्सा बन रहे हैं, जिसके गुनाह के बारे में हमें कुछ भी पता नहीं है। इस वायरस अटैक ने दुनिया को हिला कर रख दिया है। बड़े बड़े राष्ट भी अपनी सर्वश्रेष्ठ तकनीक एवं उच्चतम चिकित्सा संसाधन के होते हुए भी अपने अनगिनत बेगुनाह मासूम लोगों के प्राण नहीं बचा पाए हैं। तब जब की हम भली प्रकार परिचित हैं की भारत के पास अमरीका और इटली जैसे अति विकसित राष्ट्रों की तुलना में चिकित्सा के क्षेत्र में उतने संसाधन उपलब्ध नहीं है, तो ऐसे में हमारी सरकार का अपनी 135 करोड़ की आबादी वाले विशाल राष्ट को संभाल पाना आसान नहीं होगा।
यदि कोरोना वायरस से बढ़ रही इस महामारी से बचने का एकमात्र आसान तरीका सामाजिक दूरी बनाए रखना ही है, तो माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा इसी उपाय पर कारगर कदम उठाया जाना आवश्यक था और उन्होंने समय रहते सब कुछ बंद करके लोगों को अपने अपने घरों में आराम से अपने परिवार के साथ बाहरी वातावरण और दुनियादारी से दूर खुद को बचाए रखने के आदेश जारी कर दिए।
उधर भारत का आम आदमी अपनी ही दुनिया में मगन, दिन रात जूझता हुआ आगे बढ़ता जा रहा था।
कि अचानक…
सब कुछ रुक गया!!
जैसे यूं ही बात करते हुए अल्पविराम सा लग गया हो। सब कुछ खत्म होने से बचाने के लिए सरकारों ने अल्पविराम लगा दिया। हर कोई अपने ही घर में कैद सा हो गया।
हमारी परिकल्पना से परे पूरी दुनिया का कोना कोना बंद हो गया। सदियों से निरंतर चलने वाली रेलगाड़ियां, हवाईजहाज, बसें सब रुक गई…
सड़कें खाली हो गई…
फ़ैक्टरियां बंद हो गई…
मशीनें रुक गई…
कामकाज ठप पड़ गया…
बच्चों की परीक्षाएं रद्द हो गईं…
हर रजिस्टर, हर खिड़की बंद हो गई…
जहां अब तक लंबी लंबी कतारें लगी थीं, वहां सन्नाटा छा गया, बहुत सी दलीलों और बहस के मुद्दे वहीं रुक गए, भीड़ से भरे बाज़ार सुनसान हो गए। धड़ाधड़ बनती इमारतों का निर्मण थम गया। वो जद्दोजहद, वो मारा-मारी, वो दिन भर की भागम भाग सब अचानक जैसे किसी ने पॉज कर दिया।
अब हर किसी को अपनी जान की परवाह होने लगी। पैसे पैसे के लिए दिन रात धक्के खाता इंसान आज हर एक चीज का मोह छोड़कर केवल मात्र अपने परिवार और अपने देश के स्वास्थ्य की परवाह करते हुए अपनी दहलीज के दायरों में छिप गया। दोस्ती-यारी, अड़ोस-पड़ोस, समाज, रिश्तेदार हर किसी को छोड़कर केवल अपने खास रिश्तों के साथ चारदीवारी में आ गया। कल तक जो लोग दिल खोलकर अपने साथियों के साथ ठहाके लगा रहे थे, अब उनकी सूरत भी न जाने कब देखने को मिलेगी।
भारत त्याहरों का देश है, यहां एक ही दिन को अलग अलग संप्रदाय के लोग अपने विशेष त्योहारों के रूप में सब के साथ मिल जुलकर मानते हैं। ऐसे देश में नवरात्रि, चेटीचंडी और गुड़ी-पर्वा जैसे त्योहार बिना बधाइयों, मिठाइयों और रौनक के है बीत गए।
यह भी अपने आप में परिकल्पना से परे है कि इस बार चैत्र मास की नवरात्रि में मां जगदंबा की पूजा कन्या पूजन के बिना ही पूरी की गई है।
लाखों करोड़ों का आर्थिक नुकसान, बेरोज़गारी, गरीबों की बेचारगी जैसी अनगिनत परेशानियों के बावजूद सबसे पहले स्वस्थ और जीवन के मूल्य को रखते हुए आज हम सब अपनी अपनी जगह स्थिर होकर अपना, अपने परिवार का और फिर अपने राष्ट का संरक्षण कर रहे हैं।
ऐसा शायद जीवन में पहली बार हुआ है कि सारा परिवार एक साथ बहुत से दिनों के लिए घर पर ही है। और तो और बाहर से कोई आ भी नहीं सकता यहां तक की कामवाली भी नहीं। ज़ाहिर है जहां बच्चों और पुरुषों के लिए छुट्टी का सा माहौल बना हुआ है वहीं महिलाओं के लिए जी का जंजाल, पर सकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आज हर घर की बिल्कुल एक सी कहानी है। मन में कहीं ना कहीं इस लाइलाज संक्रमित बीमारी और इससे होने वाली अकस्मात मृत्यु का भय कचोट रहा है, इसलिए सारा परिवार मिलजुल कर रह रहे हैं।
अब नहीं तो कब समझोगे: तकलीफ़ तो तब होती है जब सरकारों और समाज के सैकड़ों लोगों की तरफ से लॉक डाउनलोड पर मिल रहे सहयोग और जागरूकता के बावजूद भी अनायास ही कोई न कोई समूह अपनी मनमर्जी करता हुआ लॉक डाउनलोड और सरकारी निर्देशों का सामूहिक रूप से उल्लंघन कर देता है। यहां तक की कभी धार्मिक तो कभी बेरोज़गारी के नाम पर कोरोना वायरस को फैलने का मौका दे देते हैं। न जाने क्यों धर्म के नाम पर मासूम लोगों को उकसाने वाले लोग इस बात को समझना ही नहीं चाहते। जबकि सब कुछ वैज्ञानिक तौर पर सामने है तो भला और किस सबूत अथवा जानकारी की आवश्यकता शेष है। हजारों लोगों के मृत शरीरों की कतारों और इस भयंकर ला-इलाज बीमारी से होने वाली तकलीफ़ तथा उसकी छुआछूत से फैलने की प्रवृत्ति को देखने सुनने के बावजूद भी धर्म के नाम पर न जाने किस वीरता का प्रमाण देने की चेष्टा हो रही है। ऐसे लोगों से कर-बद्ध निवेदन है कि अपनी नादानी और ज़िद के चलते संपूर्ण देश को नुक़सान पहुंचाने का जुर्म ना करें और सरकारी निर्देशों और नियमों का पालन करते हुए, “जियो और जीने दो” के जुमले का साथ दें एवं अपने घर में ही अपने परिवार के साथ प्रेम से अपने धर्म का पालन करें।
ये तो हद ही हो गई: कॉरोना वायरस के महायुद्ध से लड़ने के लिए सारे विश्व के पास डॉक्टरों और उनकी पैरामेडिकल टीम सबसे बड़े सिपाही के रूप में तैनात है। हम सब ये मानते हैं कि छोटे-मोटे, बुखार, नजला, फोड़ा फुंसी से लेकर बड़ी से बड़ी बीमारी के लिए हम धरती पर डॉक्टर को ही भगवान के रूप में देखते हैं।
फिर आज, कोरोना वायरस से इस जंग में यदि कोई सबसे महत्वपूर्ण प्राणी ईश्वर के दूत के रूप में हमारे समक्ष खड़ा है तो वह और कोई नहीं पर एक डॉक्टर है। हम यह भी भली प्रकार जानते हैं कि पिछले चंद महीनों में दुनिया भर के अनगिनत डॉक्टरों और उनकी टीम ने सैकड़ों लोगों की सेवा अपनी जान पर खेलकर, अपने परिवारजनों से दूर रहते हुए, आने वाले कल की चिंता किए बगैर, की हैं।
जहां पिछले दिनों इन जांबाज सिपाहियों का अभिनंदन करते हुए सरा देश ताली और थाली बजाकर अपना प्रेम बरसा रहा था वहीं उनके लिए आज गालियां और पथराव क्यों? गली-गली जाकर एक एक व्यक्ति की जांच करने वाले डॉक्टरों को रास्ते पर दौड़ा कर पत्थर मारे गए। यह घटना बेशक निंदनीय एवं शर्मनाक है। माना कि वास्तुस्थिति सबके लिए तनावपूर्ण है, हर जाति, धर्म, वर्ग एवं वर्ण अथवा समुदाय के लोग चिंता से ग्रसित हैं। एक तरफ इस महामारी से अपने परिवार को बचाने की चिंता है तो दूसरी ओर बेरोजगारी और भूख से अपने प्रिय जनों को उभारना है। पर इन सब नकारात्मक मानसिक स्थितियों के बावजूद इस तरह का व्यवहार निश्चित तौर पर असहनीय है। इस बात से देश के सभी चिकित्सक निराश, रुष्ट और भयभीत हैं।
लेकिन फिर भी किसी एक समूह की ऐसी हरकत से सामान्य तौर पर हर एक भारतीय की तुलना नहीं करनी चाहिए। इसलिए सभी डॉक्टरों, पैरामेडिकल स्टाफ, पुलिसकर्मी एवं हर आवश्यक कार्य के कर्मचारी जो इस संदिग्ध अवस्था में भी हम सब की सेवा में दिन रात तत्पर है उनको कोटि-कोटि प्रणाम एवं हार्दिक अभिनंदन।
हमारी विराट संस्कृति से हमने यह ही तो सीखा है न कि, हालात चाहे जैसे भी हो हमें किसी भी कीमत में अपनी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए।
जरा मुस्कुरा कर तो देखो : जब तक शरीर में जान है, तब तक जीना तो है ही। सांसे अगर चल रही है तो मुस्कुराने में क्या हर्ज है! माना तकलीफ़ है, डर भी बहुत है, पर हौसले को उड़ान देने में बुराई ही क्या है!
इस विचारधारा का बहुत खूबसूरत उदाहरण हम भारतीयओं ने कोरोना वायरस के खिलाफ चल रहे संघर्ष के दौरान अपनी कलात्मक सोच से प्रदर्शित किया है।
इस संकट और भय के माहौल के बीच सबसे अच्छी चीज जो सबके जीने का सहारा बनकर साथ साथ चल रहा है वह है इंटरनेट और सोशल मीडिया।
कोविड19 से बचाव के लिए सामाजिक दूरी बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा किए गए लॉकडाउन के दौरान लोग वॉट्सएप एवं अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से खट्टे मीठे, सीधे अथवा व्यंगतमक और प्रेरणा प्रद कविताओं, चुटकुलों और हंसी मज़ाक लिखकर और वीडियो द्वारा संदेश बना कर इस तरह दर्शा रहे हैं कि इतना बड़ा संकट भी गुब्बारे की तरह हल्का लग रहा है।
यूं ही एक वीडियो संदेश के माध्यम से एक सज्जन लोकडाउन में अपना व्यावसायिक कार्य घर से नियंत्रित करते हुए अपने अनुभव बताते हुए बोले कि, “इन दिनों सबसे अच्छी बात यह हो रही है कि मुझे नींद बहुत बढ़िया आ रही है। रात में तो सोते ही थे, अब तो दिन में भी जब मौका मिले सो जाता हूं। पर परेशानी की बात यह है कि सपनों का स्टॉक बहुत कम है, कभी कभी तो ऐसा लगता है मानो सपने भी रिपीट हो रहे हैं। हा हा हा हा
इन संदेशों से हमारा मनोरंजन तो हो ही रहा है साथ ही बहुत सी ज्ञानवर्धक बातें भी प्राप्त हो रही हैं। अब देखा जाए तो इसी बात से यह भी विचाणीय है कि पहले कि तुलना में अब वे गहरी और आरामदायक नींद का अनुभव कर रहे हैं। क्योंकि जब सब बंद है तो किसी काम के होने अथवा ना होने ही कोई चिंता ही नहीं रही, और यही चिंता मुक्त निद्रा ही हमारी उच्चतम सेहत की ओर पहली सीढ़ी के समान है।
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Hi Raman,
Very nice blog you have written
It’s really motivational which keeps our emotional health gud
Thank u so much 😊