MyPoems: घर की धूल
घर की धूल *चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को, कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को, *कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे, ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से! *हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला, हिम्मतें...
MyPoems: मेरा अक्स
क्यूँ इतना मजबूर मेरा वजूद नज़र आता है ? उलझा उलझा बड़ा फ़िज़ूल नज़र आता है अपनी आँखों के बिखरते सपनों का क़तरा क़तरा ज़हर सा नज़र आता है हम ढूँढ़ते रहे जिन गलियों में खुद्की परछाई उन गलियों में अँधेरा ही नज़र आता है वो ख्वाहिशें जो उड़ती...
MyPoems: नारी शक्ति को दर्शाति कविता : तुम बिन
मैं जी नहीं पाऊँगी तुम बिन हाँ, जी नहीं पाऊँगी तुम बिन चाहे रिश्ते हजार मिल जाए पर साथ न कोई भी तुम बिन चाहे नाम अनेकों पड़ जाए, पहचान नहीं मेरी तुम बिन चाहे काम पहाड़ से बढ़ जाए पर शक्ति नहीं होती तुम बिन चाहे वक्त बहुत...
MyPoems : Social issues : सामाजिक पहलू
आरक्षण कोई मत बांटो इस देश को कोई मत बांटो मेरे देश को य यह भारत माता तड़प रही हम सब के आगे बिलख रही मत तोड़ो उस विश्वास को जो जोड़े आम और खास को अरे मत बांटो इस देश को तुम मत तोड़ो इस देश को यह आरक्षण...
My Blog : मेरे बचपन का सपना
इस दुनिया में हर कोई अपने सपनों के साथ जी रहा है। जैसे आत्मा के बिना शरीर का कोई मतलब नहीं वैसे ही सपनों के बिना अस्तित्व के कोई मायने नहीं। मेरे भी तो सपने हैं, वही जो बचपन से हमारे साथ साथ चलते आ रहे हैं, जिन्हें पूरा...
MyPoems: मरीचिका
मरीचिका •आसमां जितना भी दिखे, हाथों में समा सकता नहीं •आईने में अक्स: चाहे, मैं ही हूँ फिर भी छुआ जाता नहीं •ख्वाब जितने भी हों पलकों के खुलते ही, मिला करते नहीं •तमाम उर्म गुज़ार ली सीखने सिखाने में फिर भी यूं लगता है मानो अब भी कुछ...