Festivals of India: Hariyali Teej
एक लेख: हर रंग तीज का (द्वारा रमनदीप कौर, पटियाला, पंजाब)
हमारे देश के अलग-अलग प्रांतों में एक ही त्यौहार (Festivals) को कई तरह से मनाया जाता है। इनसे जुड़ी कुछ बातें हमें किसी से सुनकर या पढ़कर पता लग जाती हैं। तो कुछ हम खुद अनुभव करते हैं, और यदि हमें सचमुच एक ही त्यौहार को अलग-अलग जगह पर अनुभव करने का मौका मिले तो उस का आनंद ही कुछ और है। इस संदर्भ में मैं अपने आप को कुछ सौभाग्यशाली मानती हूं, क्योंकि मुझे भारत के कई राज्यों में रहने और उनके त्योहारों को मनाने के बेहतरीन अवसर मिला है। इस लेख में हम राजस्थान और पंजाब में हरियाली तीज के संदर्भ में बात करेंगे।
त्यौहारों में मेल-मिलाप और खुशनुमा चेहरों की रंगत कई दिनों तक हमारे मन में अपनी छवि बनाए रखती है। इसलिए अगले वर्ष फिर हमें इन त्यौहारों का बड़ी बेसब्री से इंतजार रहता है। त्योहारों की इस लिस्ट में एक त्यौहार हरियाली तीज का भी है। जिसके बारे में इस लेख में हम चर्चा करेंगे।
मेरा बचपन राजस्थान में बीता है, राजाओं की नगरी राजस्थान अपनी पारंपरिक संस्कृति के लिए सारे जगत में मशहूर है। यहां हर त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है और स्त्रियों का इन सभी त्योहारों में बड़ा महत्वपूर्ण योगदान भी रहता है। मैंने अपने आसपास की महिलाओं के हाथ हमेशा मेहंदी से सजे देखें हैं। कभी कोई त्यौहार तो कभी कोई त्यौहार और हर त्योहार की शुरुआत हाथों में मेहंदी लगा कर की जाती है। राजस्थान की महंदी सारी दुनिया में मशहूर है।
अगर हम हरियाली तीज की बात करें तो आसपास के बगीचों में बड़े बड़े पेड़ों पर झूलो पर झूलना इस तीज का पहला सबसे आकर्षक केंद्र रहता है। उसके बाद लहरिया की साड़ियां जो बरसते हुए पानी को दर्शाती है और खाने में घेवर जो पानी में पड़ी बूंदों को दर्शाता है काफी रोचक है। क्योंकि प्रकृति के साथ यह मेल त्योहारों को और भी खूबसूरत बना देता है और अगर गौर से देखा जाए तो सभी त्योहार कहीं ना कहीं प्रकृति से इस कदर जुड़े हैं कि हमें प्रकृति से दूर नहीं होने देते।
शादी के बाद मैं पंजाब की बहू बनकर आई और फिर पंजाब के त्योहारों के साथ अपना अनुभव बनाती रही तीज के संदर्भ में अगर मैं पंजाब को जोड़ो तो यहां जोश और शोर का बड़ा सुंदर मेल है। रंगों के साथ पंजाबियों का अलग ही एक संबंध है चमकते भड़कीले रंगों से सजी फुलकारी, ऊंचे सुर में टप्पों की धुन काफी लगती है। खूबसूरत पंजाबी महिलाएं चौड़ी मुस्कान के साथ अपने त्योहारों का अनोखा आनंद उठाती नज़र आती हैं ।
दोनों ही अलग अनुभव है दोनों में कुछ समानताएं और कुछ विभिन्नताएं त्योहारों की रौनक बहुत बड़ा देती है। सुहागनों का सिंगार तो एक जैसा ही होता है पर फिर भी सिंगार का अंदाज कुछ निराला है। राजस्थान की नजाकत और पंजाब के जोश का अंतर कहीं न कहीं दिखता है और उसका अलग आनंद है। मैं खुद को बहुत खुश किस्मत मानती हूं कि यह दोनों ही अनुभव मैंने प्रत्यक्ष किए हैं।
जब ढोलक की ताल बचती है तो राजस्थान में घूमर और पंजाब में गिद्धों के स्वर वातावरण को आलोकित कर देते हैं। घुंघट में छिपी मारवाड़ी गीतों की आवाजें बड़ी धीमी धीमी आती हैं और फुलकारी उड़ातीं आसमान की ओर देखती हुई ऊंचे स्वर में टप्पे गातीं ये जोशीली आवाज़ें नाचने को मजबूर कर देती है।
आइए देखते हैं कि तीज क्यों और कैसे मनाई जाती है।
पौराणिक महत्व : कहा जाता है कि इस दिन माता पार्वती की सैकड़ों सालों की तपस्या के बाद भगवान शिव ने उन्हें आज के ही दिन अपनाया था। इस अवसर पर जो सुहागन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए सोलह श्रृंगार करके शिव-पार्वती की पूजा करती हैं उनका सौभाग्य बढ़ता है।
उत्तर भारत में महत्व : उत्तर भारत के लगभग सभी राज्यों में तीज का त्यौहार बड़े उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन महलायें मायके से आए वस्त्र आैर श्रृंगार की वस्तुये पहनती हैं। इस उपहार को सिंधारा कहते हैं। इस सिंधारे में खाने की चीजें भी आती हैं। सावन में विशेष रूप से बनने वाली इन चीजों में घेवर, गुझिया और फेनी शामिल होती हैं।
हरियाली तीज के लिए एक महीने पहले से तैयारियां शुरू हो जाती हैं और बाजार की रौनक देखते ही बनती है। तीज से एक दिन पहले नवविवाहित कन्याओं के लिए उनके सुसराल से सिंजारा आता है। श्रावणी तीज, हरियाली और कजली तीज के रूप में मनाई जाती है। इसमें महिलाएं उपवास और व्रत रखकर मां गौरी की पूजा करती है। सुहागन महिलाओं के लिए यह व्रत काफी मायने रखता है।
राजस्थान में इस त्यौहार का खास महत्व है। इस दिन प्रदेश की राजधानी में तीज माता की सवारी निकलती है जो दखने लायक होती है। यह संगीत, नृत्य और कई भक्तों के साथ शहर के चारों ओर घुमाया जाता है। तीज जयपुर में दो दिवसीय उत्सव है इस दिन बाजारों को सजाया जाता है तीज़ उन पर्यटकों के लिए भी एक लोकप्रिय आकर्षण है जो उत्सव देखने के लिए जयपुर जाते हैं।
पर तीज का असली आनंद तो वहां की स्थानीय स्त्रियों के साथ घूमर गाकर ही आता है। पेड़ों पर सजे झूले और उन पर बैठी सजी-धजी गुड़िया सी, लहरिया उड़ाती राजस्थानी महिलाएं, गाड़ी मेहंदी लगे अपने पैरों से झूले को आगे बढ़ाती पायल और बिछिया की छम छम से मौसम के साथ ताल से ताल मिलाती हैंं। हथेली की सुंदर सजी मेहंदी और कलाई पर कांच की चूड़ियाँ खनकाती, सोलह सिंगार किए, लहरिया की साड़ियां या चुनर की सुंदरता देखते ही बनती है।
राजस्थानी पारंपरिक परिधान पहने और श्रृंगार कर टकला, झुमके, सिंदूर बिंदिया और आंखों में पिया का प्यार सजती हैं। राजस्थानी स्त्रियों की हल्की हल्की मुस्कान और आधे से घूंघट में छुपी मासूमियत मुझे बहुत याद आती है। मीठी मीठी आवाज में मनवार करती, घेवर परोसती वो प्यारी-प्यारी उंगलियां मुझे कभी नहीं बोलती। जमाना चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए पर इन त्योहारों पर मिट्टी की खुशबू आ ही जाती है, और अगर बात सावन की तीज की हो तो बरसात की मीठी मीठी फुहार और ठंडी बयार के साथ त्यौहार में चार चांद लग जाते हैं। मानो, स्वयं भोलेनाथ मां पार्वती के साथ आराम से बैठ कर मुस्कुराते हुए इन सब उत्सवों का आनंद ले रहे हों।
पंजाब में इस त्यौहार को तीयाँ के नाम से जाना जाता है यहां भी प्रिया अपने मन में अपने पति की शुभकामना करते हुए ईश्वर से प्रार्थना करती हैं और और सुंदर चमकीले वस्त्र माथे पर टीका कलाई भर-भर की चूड़ियां लंबी परांदे वाली चोटी और सबसे महत्वपूर्ण सुंदर रंगों से सजी फुलकारी पहनकर एक बड़े स्थान पर एकत्रित हो खूब जोश के साथ गिद्दा करती हैं गिद्दा पंजाब का पारंपरिक नृत्य है और इसमें जोर जोर से ताली बजाकर मुस्कुराते हुए छोटी-छोटी बातों पर बने हुए दोहे जिन्हें टप्पे कहा जाता है के रूप में गाते हुए अपनी जोरदार एड़ी जमीन पर देते हुए सुंदर नृत्य प्रस्तुत करती हैं जोश और खूबसूरती का यह अद्भुत नजारा देखते ही बनता है फूलों से सजे झूलों पर तेज-तेज झूठी ठहाके लगाकर हस्ती मतवाली और बहुत प्यारी यह पंजाबी महिलाएं इस त्यौहार का अलग ही आनंद लेती हैं।
सबसे खास बात ये है कि इस त्योहार के लिए अपने मायके जाने का भी मौका मिलता है जो सुहागिनें गंवाना नहीं चाहती हैं। इस दिन स्त्रियां भी प्रकृति के साथ एकाकार होती हुई हरे वस्त्र और हरी चूडियां पहनती हैं। वे लोकगीत गाती हुई झूला झूलती हैं। यह प्रश्न भी उठता है कि आखिर यह पर्व सिर्फ स्त्रियों ही क्यों मनाती हैं ? तो इसका जवाब है कि, मेल मिलाप का गुण सिर्फ स्त्री के ही पास है। वही प्रकृति की तरह बन सकती है। पुरूषों केे लिए यह सब थोड़ा मुश्किल है। पुरुष मन से कुछ जटिल होते हैं और स्त्रियों के प्रति हर परिस्थिति में संतुलन नहीं बना पाते इसलिए स्त्री हर संभव तपस्या व्रत उपवास बड़ेेे उत्साह के साथ निभाते हुए अपने परिवार मुख्यतः पति की मंगल कामना करती हैं।
इस वर्ष की तीज के लिए आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं मैं आशा करती हूं कि आपको मेरा लेख पसंद आएगा होगा, आप अपनी तीज किस तरह बनाती हैं मुझे कमेंट करके जरूर बताइएगा।