MyBlog: बच्चे की बोली जैस कुंए की आवाज़
बच्चों को जन्म देना और उनकी तन्दुरुस्ती का ध्यान रखना मात्र ही तो परवरिश नहीं।
माता पिता के लिए बच्चे के और भी जरूरी जिम्मेदारी है उन्हें अच्छा इन्सान बनाना। यह एक सतत प्रक्रिया है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होता है उसे कई संस्कार सिखाए जाते हैं। बच्चों में संस्कार माता पिता के अलावा सभी परिवार जनों की भी जिम्मेदारी है। यदि बच्चा समाज में ठीक तरह विचरण न कर सके तो यह भी परिजनों की ही कमी का परिणाम होगा। समाज में रहने के बहुत से नियम है और एक नियम भाषा का भी है हमें अपने बच्चों को सही तरह से बोलना भाषा का सकारात्मक इस्तेमाल करना सिखाना चाहिए और इसे सिखाने के लिए अलग से कोई स्कूल या क्लास की आवश्यकता नहीं होती। हम जिस तरह रोज आपस में बातचीत करते हैं उसी से बच्चे सीखते हैं। एक नवजात शिशु को क्या पता कि उसे हिंदी, इंग्लिश या कोई अन्य भाषा बोलनी है वह तो अपने परिजनों की बातचीत से ही भाषा को अपनाता है मम्मी-पापा, आई-बाबा या मॉम-डैड यह सब अपने आसपास की भाषा से ही तो सीखता है ना। तो सकारात्मक भाषा और नकारात्मक भाषा का प्रयोग भी निश्चित तौर पर वह अपने परिजनों से ही सीखता है।
अनुराधा का विवाह एक बहुत समृद्ध परिवार में हुआ है। उनके ससुराल का व्यवसाय दूध की डेरी है। उसका बहुत बड़ा डेरीफार्म है, बहुत से मवेषी है और उन्हें संभालने के लिए कई तरह के सहायक कार्य करते हैं।
शादी के कुछ समय बाद अनुराधा को एक प्यारा सा बेटा हुआ सारा परिवार बहुत खुश था और संभावितः सभी का बहुत लाड़ला था। जब मुन्ना चलने लगा, बात करने लगा तब उसने डेरीफॉम भी जाना आना शुरू किया। वहां सभी लोग एक दूसरे से बड़ी सख्त भाषा में तथा गाली गलोच कर जोर-जोर से बातचीत किया करते थे।
धीरे धीरे मुन्ना भी वह सब बोलने लगा। उसकी मासूम तोतली भाषा में छोटी-छोटी गालियों का घर के सभी लोग आन्नद लेते, बड़े खुश होते तालियां बजाते और मासूम बच्चे को शायद यही लगता था कि वह बहुत अच्छी कोई बात सुना रहा है, जिससे सभी लोग बड़े खुश हो रहे हैं। प्रोत्साहन मिलने की वजह से उन्हीं शब्दों को बार-बार दोहराता।
जब-जब अनुराधा पीहर जाती उसके परिवार वाले और पड़ोसी इस बात का विरोध करते। “यह क्या सिखाया है बच्चे को?” अनुराधा का भाई भी मुन्ना को अपने साथ कहीं ले जाने में शर्म महसूस करने लगा। अनुराधा खुद भी बहुत परेशान रहने लगी, पर वह अकेली कर भी क्या सकती थी। भाषा एक ऐसा ग्यान है जो बच्चे को सभी लोग मिलकर सिखाते हैं। इतने छोटे बच्चे को डांटना या सजा देना भी संभव नहीं था। उसे एहसास हुआ कि जब मुन्ना बड़ा होगा इसकी यह आदत सभी को खलने लगेगी, तब सभी एक ही बात कहेंगे की मां ने नहीं सिखाया।
एक दिन अनुराधा ने हिम्मत करके रात के खाने के समय सभी के सामने प्रस्ताव रखा कि कृपया करके मुन्ने की गलत भाषा को प्रोत्साहन ना दिया जाए। जब भी वह इस तरह का कोई शब्द या बात करे तो उसे तुरंत रोका जाए। सभी मिलकर मुन्ना को सही भाषा का प्रयोग करना सिखाएं। कल जब मुन्ना बड़ा होकर अपने स्कूल, कॉलेज में अपने साथियों के साथ इस प्रकार की भाषा का प्रयोग करेगा तो उसका कोई मित्र नहीं बनेगा। किसी सभ्य समूह में साथ नहीं पा सकेगा। नौकरी, शादी कुछ भी व्यवस्थित नहीं रह पाएगा। इंसान का चरित्र सबसे पहले उसकी भाषा से ही प्रस्तुत होता है।
इस बात को सुनकर सभी हंसने लगे, “अभी छोटा है”, कहकर बात को टालने लगे, अनुराधा का मजाक उड़ाने लगे। तब अनुराधा के पति और ससुर जी ने इस बात का समर्थन करते हुए सभी को यह हिदायत दी कि अब से मुन्ने को फॉर्म में बहुत देर तक ना रखा जाए और यदि वह कोई गलत शब्द अथवा भाषा का प्रयोग करे तो उसे तुरंत टोक कर बात को सही तरह से बोलने का तरीका बताएंगे। समय रहते मुन्ना की भाषा पर संतुलन बना लिया गया।
बच्चे कुएं की आवाज की तरह होते हैं हम जैसा बोलेंगे वे वैसा ही दोहरा कर सुना देंगे इसलिए बच्चे बदतमीज नहीं होते, तमीज और बदतमीजी वे अपने आसपास से ही सीखता है।
आपको मेरे विचार एवं कहानी कैसी लगी क्रपया कॉमेंट करके बताईये।
धन्यवाद
fantastic thought…
life always play such games and we have to chase our dreams in any case….