RITA SINGH, HER NAME IS HER IDENTITY

मेरी मां की जो सबसे ख़ास बात मुझे पसंद आती है, वो है उनका समाज में अपनी पहचान अपने स्वयं के नाम से बनाए रखना। वरना लोग महिलाओं को उनके पति के नाम से या ससुराल के सरनेम से ही पहचानते हैं।

मुझे हर बार इस बात का गर्व महसूस होता है कि मैं मेरी मां श्रीमती रीता सिंह की बेटी हूं। मेरी मां एक बंगाली ब्राह्मण परिवार से संबंध रखती हैं, उन्होंने शिक्षा, संस्कार और मूल्यों का बहुत अच्छा तालमेल अपने माता-पिता, दादी और बड़े छोटे भाई बहनों से सीखा। बाद में उन्होंने मेरे पिता सरदार गुरमीत सिंह मैन, जो कि एक सिख परिवार से संबंध रखते थे से विवाह किया जो अपने आप में समाज के लिए एक अतुलनीय उदाहरण था। जिसके लिए उन्हें अनेक संघर्ष करने पड़े पर,
हर मुश्किल में उनकी सूपर-पावर यानि उनकी सबसे खूबसूरत चीज़ उनकी चेहरे की मुस्कुराहट और आंखों की चमक हमेशा लाइफ-लाइन की तरह उनका साथ देतीं रहीं।
जब तक मैंने होश संभाला तब तक मां हमारे शहर में एक जाना माना बुटीक शुरू कर चुकी थीं, जिसमें बच्चों के विभिन्न प्रकार के परिधान तैयार किए जाते थे। इसके साथ साथ वे आए दिन आकाशवाणी अथवा कॉलेजेस में नारी सशक्तिकरण अथवा महिला स्वरोजगार से संबंधित लेक्चर भी दिया करती थीं।
धीरे-धीरे उनका काम अपने पैर पसारता रहा और बच्चों के कपड़ों से U-Turn लेकर उनके हुनर की गाड़ी लेडीस ड्रेसेस की गलियों से गुजरते हुए होम डेकोरेशन के शानदार उत्पाद बनाती अपनी जिंदगी के हाईवे पर बड़ी स्पीड से दौड़ने लगी।
इसके बाद उन्होंने खाने खज़ाने की दुनिया में भी अपना जलवा दिखाया। खाना तो वे बहुत लजीज बनाती ही हैं पर Food craft और Food preservation के क्षेत्र में उन्होंने फलो और सब्जियों को लंबे समय तक रखने और उनकी value addition संबंधित विषयों पर ध्यान देते हुए बड़े स्तर पर अचार, मुरब्बे, सॉस और शरबतों जैसे उत्पादों की लंबी कतार तैयार की। इन उत्पादों की विशेषता इनका पूणतया शुद्ध और घरेलू तरीके से तैयार किया जाना रहा है और सबसे महत्वपूर्ण स्वच्छता का सर्वाधिक ध्यान रख कर काम करना है।
कई वर्ष पहले मां ने कुछ परिचित महिलाओं का समूह बनाकर एक गैर सरकारी संस्था भी स्थापित की, जिसके अंतर्गत महिला स्वरोजगार, महिला सशक्तिकरण, महिला एवं बाल विकास जैसे कई विषयों पर बहुत से सरकारी और गैर सरकारी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए समाज के हर वर्ग के हर जाति के लोगों के साथ बड़ा खूबसूरत सम्बन्ध स्थापित किया।
ज़रूरतमंद महिलाओं के समूह को इन उत्पादों को बनाने की सारी प्रक्रिया सिखाना फिर पैकेजिंग से लेकर मार्केटिंग तक उनकी मदद करना, यह सब मेरी मां के सानिध्य में इतनी आसानी से होता रहा है, जैसे कोई बड़ी बात ही ना हो। उनके जीवन के कारवाँ में एक से एक मेहनती और हुनरमंद महिलाओं का योग होता ही रहा है।

पर इन सब के बीच खास बात ये थी की उन्होंने मुझे और मेरे भाई यहाँ तक की पूरे परिवार को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया।

उनकी लाइफ का फन्डा है की हमेशा एक learner बन के रहना चाहिए, इसलिए वे कभी खुद को दक्ष न मानते हुए हर बार किसी नौसिखिये की तरह चीज़ों को बड़े शौक़ से सीखतीं हैं। 🌹आज जब मैं खुद एक माँ हूँ तो कई बार खुद को उनके मुकाबले बहुत कमज़ोर पाती हूँ क्योंकि मैं इतनी multitasking नहीं हूँ जितनी वे हैं।

माँ आज भी अपने स्वाभिमान के साथ अपना जीवन जी रही है और मेरे लिए उनका होना मात्र ही हिमालय पर्वत से अडिग और गंगा सा सशीतल महसूस होता है।

इस मदर्स डे पर मेरी ओर से मेरी माँ को मेरे शब्दों के खज़ाने में से ये लेख समर्पित करना चाहती हूँ।

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

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