MyPoems : Social issues : सामाजिक पहलू
आरक्षण
कोई मत बांटो इस देश को
कोई मत बांटो मेरे देश को य
यह भारत माता तड़प रही
हम सब के आगे बिलख रही
मत तोड़ो उस विश्वास को
जो जोड़े आम और खास को
अरे मत बांटो इस देश को
तुम मत तोड़ो इस देश को
यह आरक्षण का जेवर तो समतुल्य बनाने वाला था
यह जाति में विक्रय लोगों को रेशम से बांधने वाला था
हम यंत्र नहीं है मानव है यह सब कुछ बताने वाला था
तुममें हम में कोई भेद नहीं यह दीप जलाने वाला था
कोई मत बांटो इस देश को
तुम मत तोड़ो इस देश को
कल शोर मचा था राहों में हम ऊंचे हैं तुम नीचे हो
अब शोर मचा है गलियों में हम को भी नीचे आने दो
आरक्षण दो आरक्षण दो हमको भी तुम आरक्षण दो
क्योंकि
सब रोजगार को तरस रहे और पढ़ लिख कर भी भटक रहे
अब कैसे होगा संपादन, करना होगा यह संशोधन
ना जात रहे ना पात रहे आरक्षण की ना बात रहे
हम एक हैं हम एक हैं हम सब से भारत एक हैं
हम भारत मां के बच्चे हैं हम सब से भारत एक है
।।जय हिन्द।।
तृष्णा
(बलात्कार के विरोध में)
तृष्णा देह की हर हाल में बस कष्ट देती है,
वासना देह की हर हाल में बस नष्ट करती है।
तृष्णा एक की, दूजे को लहूलुहान कर देती,
वासना दुष्टता और असुरता का प्रमाण बन जाती।
दुष्ट को वासना में जरा भी करुणा नहीं रहती
ना नन्हीं चीख पिघलाती,
ना दर्द की आह चुभती है।
तृष्णा में वो अंधा और अचेत हो बैठा,
कहर में इसके वह खुद का भी विनाश कर बैठा।
तो जैसे हत्या के बदले मृत्यु का दंड निश्चित है,
यहां पर आत्मा की हत्या है तो, दोषी को मत छोड़ो।
ना ज्यादा वक्त लो, वही बस हिसाब कर डालो,
बदल दो नियम और कानून सीधा धर्म कर डालो।
न छोड़ो ऐसे रोगी को, जो बच्चा ना बड़ा समझे,
न छोड़ो ऐसे रोगी को, जो वासना में ना कुछ समझे।
पुरुष की देह जो उसकी है, उसे अपना अहम समझे,
और स्त्री की देह को बस भोगने के योग्य ही जाने।
न छोड़ो ऐसे रोगी को, अहम उसका कुचल डालो,
मार डालो सरेबाजार, अग्नि भेंट कर डालो।
जिसे देखे हर एक इंसान और यह प्रण निहित कर ले, कि,
वासना देह की पाप है, और नष्ट करती है,
तृष्णा देह की दोष है, बस कष्ट देती है ।।
।।धन्यवाद।।
मुद्दा
(देश के वर्तमान मुद्दे दर्शाती यह कविता)
“उम्र सारी गुजार दी हो जिस सरजमी पर,
वही अपना वतन, अपनी गली कहलाती है।
बात-बात पर दूसरों को नीचा दिखाने वालों,
क्यों भूल जाते हो अहम् सबको बराबर दिया है मालिक ने।।”
फिर वही शाम, वही दर्द, वही तन्हाई है,
फिर वही आह, वहीं राह, परत आई है।
जहां अंधेरा है, घुटन है, बदनामी है,
वहां से राह बनाओ ना समझदारी की।
कभी गोरे, कभी जालिम अनेकों रूप यहां आए,
लूटा इन सब ने हर एक गहना भारत मां बेचारी का।
सिसकती है, मां भारती न झगड़ो, तुम तो रहने दो,
संभालो अपने आंगन को, अरे तुम खुद तो मत उखड़ो।।
लगाकर धर्म की तख्ती, लड़े जाते हो सदियों से,
बहाया खून लाखों का, मिला क्या बोलो दंगों से,
अरे छोड़ो, ज़रा समझो, धर्म मुद्दा नहीं होता,
मुद्दा है, सियासत का अपनी-अपनी रियासत का।।
आज कुछ और मुद्दे हैं आज कुछ और बाते हैं,
चलो उन पर भी अपने गौर को मिल-जुलकर आने दो।
बेटियों को सशक्त कर दो, बेटों को कमाने दो,
जरूरी है जो विद्याज्ञान वह सब को पूरा पाने दो।।
आज मिट्टी जहर बनी है, और पानी कहर जैसा,
हवा का हाल भी देखो, किसी बवंडर से घिरा जैसा,
इन मसलों को कब देखोगे, कब अपने भ्रम को छोड़ोगे,
इंसान ही ना बच पाया तो, किस मुद्दे पर फिर लड़ोगे,
इंसान ही ना बच पाया तो, किस मुद्दे पर फिर लड़ोगे।।
धन्यवाद
।।जय हिंद।।