MyPoems: घर की धूल

घर की धूल

*चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को,

कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को,

*कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे,

ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से!

*हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला,

हिम्मतें उठती हैं फिर  लेने  को कोई  फैसला,

*ये भी करलूँ, वो भी  करलूँ, जी लूं अपने आप में,

कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में,

*साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज़ भी बढ़ता गया,

जिम्मेदारियों  की लय में दिन भी ढलता गया,

*मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही,

शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया

*बहुत कड़वा है ये अनुभव सोच और सच्चाई का,

दोष किसका है यहाँ पर, केवल अपने आप का,

*क्यों ये सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा,

क्यों न सोचा मैं ही चलकर खुद ही सब ले लाऊँगी

*कर रही हूं हद से बढ़ कर, मूल्य जिसका कुछ नहीं,

मूल्य क्या कोई भरेगा, जो भी है अनमोल है,

*फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है

फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है ।।

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

Hello Everyone, Thank you for being with Digital Magazine "Prerna ki Awaaz"... (An inspirational bilingual magazine for the unique journey of life of self-reliant & liberated world...) आत्मनिर्भर और मुक्त विश्व की अनूठी जीवन यात्रा के लिए एक प्रेरणादायक द्विभाषी पत्रिका... "प्रेरणा की आवाज़" के साथ बने रहने के लिए आपका हार्दिक आभार...

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