शीर्षक -राष्ट्रीय शिक्षा और सामाजिक समरसता उन्नयन में ऑनलाइन शिक्षा की भूमिका सर्वद्रव्येषु विद्यैव द्रव्यमाहुरनुत्तमम् ।अहार्यत्वादनर्ध्यत्वादक्षयत्वाच्च सर्वदा ॥ अर्थ: सब धनों में विद्यारुपी धन सर्वोत्तम है, क्योंकि इसे न तो छीना जा सकता है और न यह चोरी की जा सकती है. इसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती है और उसका न इसका कभी […]
Read Moreमीरा मिश्रा, सेवा निवृत्त प्रोफेसर, बराबू, मुजफ्फरपुर. ‘वैदिक ऋषिका से आधुनिका तक’-पथ महान या पथिक ? महिला, अर्थात महान, के कृतित्व की पूर्वकथा स्मरणीय है-पूर्व-वैदिक, वैदिक काल में उनका पारिवारिक, वैचारिक, धार्मिक व्यक्तित्व स्वातन्त्र्य, सफल पत्नीत्व, मातृत्व, सम्यक् चिन्तन, शिक्षा, आत्म-विकास के मार्ग पर, अग्रणी रहा। उत्तर-वैदिक काल में, “अपराध-अंधकार-पुंज” व “पुरुष-मुखापेक्षी” रूप, कालिदास की […]
Read Moreदानवीर भारत वर्ष में त्योहारों पर दान देने की परंपरा है। प्रत्येक धर्म, जाति एवं समुदाय के लोग अपने अपने त्योहारों पर ज़रूरतमंदों को अपनी सामर्थ्य के हिसाब से कुछ न कुछ दान देकर त्योहार की खुशियां बांटने की चेष्टा करते हैं। लॉकडाउन के दिनों में बहुत से त्योहार आए और लोगों ने सामाजिक दूरी […]
Read Moreलघु कथा “निशा चाय बन गयी क्या ?” राकेश ने अखबार से नजर हटाकर कहा। “नहीं आज अच्छा मौसम लग रहा है, बादल भी है और मिट्टी की महक भी है लगता है पानी बरसेगा इसलिए पकौड़ी बना रही हूँ। बना दूँ क्या? चाय में थोड़ी देर लगेगी।” निशा ने कहा। “नेकी और पूँछ पूँछ ये […]
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