Three Best Hindi Poems on womanhood & a Conversation: “Ghutan”

This post is written for a blophop #TheWomanThatIAm by ManasMukul & RashiRoy

1. माँ
रिश्तों के तो नाम कई हैं, पर माँ होना आसान नहीं है।
अपना हर एक ख्वाब भुलाकर, खुश रहना आसान नहीं है।
एक एक काम है मां के जिम्मे, समय सारणी सख्त बड़ी है,
पल पल काम में उलझे रहना, सच जानो आसान नहीं है।
माना ये एहसान नहीं है, किसी पर इल्जाम नहीं है,
पर अंतर्मन की अभिलाषा को,भुला पाना आसान नहीं है।
घर छोड़ो तो घर बिगड़ेगा, मन तोड़ो तो मन बिगड़ेगा,
दोनों को समेट के चलना, ये भी तो आसान नहीं है।
सबसे कठिन तो तब लगता है,जब कोई नहीं समझ पाया ये,
कि कैसे मां ने पूरी की है, हर रिश्ते की जिम्मेदारी।
कर कर के भी नाम ना मिलना, हक का वो सम्मान ना मिलना,
हंसकर सब कुछ टालते रहना,
बिलकुल भी आसान नहीं है।।
2. घर की धूल
चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को, कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को,
कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे, ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से,
हर सुबह लाती है मुझ में इक नया सा होंसला, हिम्मते उठती है लेने को कोई फैसला…
ये भी कर लूं, वो भी कर लूं, जी लु अपने आपमें, कोई मजबूरी या बंधन रोके ना अब राह में,
साथ चढ़ते सूर्य के फर्ज भी बढ़ता गया, जिम्मेदारियों की लय में दिन भी ढलता गया।
मैं मेरे सपनों के भीतर यूं ही उलझी रही, शाम आते ही अरमानों का रंग भी उड़ गया,
बहुत कड़वा है यह अनुभव सोच और सच्चाई का, दोष किसका है यहां पर केवल अपने आप का…
क्यों यह सोचा कोई आकर मेरे लिए सब लाएगा? क्यों न सोचा मैं ही उठ कर खुद ही सब कर पाऊंगी?
कर रही हूं हद से बढ़ कर मूल्य जिसका कुछ नहीं, मूल्य क्या कोई भरेगा जो भी है अनमोल है…
फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है, फिर भी लोगों की नजर में ग्रहणी घर की धूल है….

आज मीनल की कविताओं का पोस्ट देखते ही नैना ने मीनल को विडियो कॉल किया। मीनल अभी दोपहर के खाने के सभी काम समेट कर शाम कि चाय का प्याला लेकर बैठी ही थी। नैना का कॉल देखते ही मुस्कुराते हुए कॉल उठाया और बोली: “हां जी मैडम कैसी हैं आप? “

(नैना और मीनल बचपन की सहेलियां हैं शादी के बाद नैना बेंगलुरु में और मीनल चंडीगढ़ में रहने लगे। दोनों सहेलियों में इतना प्रेम है कि वे अपने दिल की हर बात एक दूसरे के साथ निसंकोच बांट लिया करती हैं।)

नैना : अभी तुम्हारी कविता पढ़ी, बहुत खूब लिखा है यार। एक एक शब्द से दर्द का एहसास हो रहा है।

वैसे फिर कुछ हुआ है क्या?

मीनल: नहीं कुछ खास नहीं, बस अब थक चुकी हूं मैं अपना आप दे देकर, मानो हार सी गई हूं। 

नैना : यह भी क्या अजीब प्रथा है समाज की वैसे, कि जहां एक तरफ लड़की कल तक अपने माता-पिता के घर में नज़ाकत से अपना जीवन व्यतीत कर रही होती है वहीं  अचानक शादी होते ही सर से पाँव तक अनगिनत जिम्मेदारियों से घिर जाती है।

यह भी भला कोई बात हुई।

मीनल : जमाना चाहे कितना भी स्त्री और पुरुष की समानता के गीत गाता रहे, पर वास्तव में समाज इस बात को अब तक भी मन से स्वीकार नहीं कर सका है।

नैना:  समाज की यही दोगली विचारधारा ही तो नारी के जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है।

मीनल : पता है, पहले के दौर में महिलाएं इतना सब कैसे संभाल पाती थी? क्योंकि तब कम उम्र में ही विवाह हो जाया करते थे, तब औरत की अपनी स्वतंत्र सोच तैयार होने से पहले ही उसे गृहस्थी की पशंपेश में धकेल दिया जाता था।

नैना : हां यार, इसलिए ही वह जीवन के अंत तक परिवार द्वारा दी गई जीवन शैली को ही अपना अस्तित्व बनाकर जीती रहती थी।

पर आज, आज बात कुछ और है। नारी उच्च शिक्षित होकर अपनी पसंद और नापसंद के दायरों को तैयार करके पूर्णतया मानसिक तौर पर परिपक्व हो जाने के बाद ही विवाह करती है। ऐसे में उसकी सोच को किसी भी तरह से दबोच कर रख पाना असंभव है।

मीनल : हम अपने पैरों पर खड़े होना चाहती हैं, अपने निर्णय स्वयं लेने में स्वतंत्र है तो बात बात पर परमिशन माँगना अच्छा नहीं लगता।

नैना : अच्छा बोल ना क्या बात है, आज तेरा चेहरा भी उतरा हुआ है।

मीनल: कुछ नया हो तो बोलूं, वही यार नैना, मैं साल दर साल अपना समय बर्बाद होता महसूस कर रही हूं। जब तक चुपचाप सबके हिसाब से चलते रहो तब तक सब ठीक ही चलता रहता है।

मैं अपने दम पर कुछ काम करना चाहती हूं, नाम और पैसा कामना चाहती हूं। मुझे समझ नहीं आता इसमें बुराई क्या है? हैरानी की बात तो यह है कि यदि मैं कुछ नहीं करती तो, यह कह कर अपमानित करते हैं कि, “तुम्हारा मुझे क्या फायदा है, मैं ही दिन रात मेहनत करके तुमको पाल रहा हूं। या फिर अपने दोस्तों रिश्तेदारों की कामकाजी महिलाओं के उदाहरण दे दे कर शर्मिंदा करते रहते हैं।   पर ज्यूं ही अपना काम करने कि बात रखो तभी, कभी जिम्मेदारियों के नाम पर तो कभी परिवार की ज़रूरतों की दुहाई देकर या तरह तरह के सामाजिक नियमों की बात करके चुप करवा दिया जाता है।

फिर भी अगर हिम्मत करके कोई कदम लेना चाहूं तो अंतिम हथियार के रूप में अपमान भरे शब्दों से मानसिक प्रताड़ना देने लगते हैं, और यही सबसे ज्यादा तकलीफ़ वाली चीज़ है।

नैना: हम्ममम…. पर ये दोहरा व्यवहार क्यों?

मीनल: क्योंकि मैं अपनी रुचि के अनुसार वह काम करना चाहती हूं जिससे मैं घर के सारे काम करने के बाद बचे समय का उपयोग कर सकूं। पर इसमें कमाई काम होगी और उनका मानना है कि छोटिमोटी राशि के लिए घर की नज़रअंदाज़ करने की कोई जरूरत नहीं।

नैना: सबसे अजीब तो यह ही है कि, अपने अंदर की insecurity को लोग अपशब्दों द्वारा क्यों जताते हैं। हमारे घर तो गली का प्रयोग भी बड़े आराम से किया जाता है। कभी कभी तो पलट कर वहीं शब्द बोलने का मन करता है, कि सुनो और सुन कर देखो कैसा महसूस होता है।  मेरी भी तो ऐसी ही कहानी है और मैं तो अच्छी नौकरी भी करती हूं। पर मुझे यह सुनने को मिलता है कि मुझे मेरे पैसे का गुरूर है। या मैं घर के कामों में ध्यान नहीं देती। शब्दों के तीर सीधा मन को छलनी का देते हैं।

मीनल: ज्यादातर महिलाओं के साथ ऐसा होता है, हम कोई विशेष तो नहीं किसी के साथ कुछ तो किसी के साथ कुछ।

नैना: शारीरिक प्रताड़ना तो दिख जाती है पर इस मानसिक शोषण का क्या, जो हमें जीते जी ही मार देता है। अपनों के बीच में रहते हुए भी एक अनचाहा सा अकेलापन और ख़ालीपन सा महसूस होता है अपने ही परिवार में सोच सोच के बात करने के लिए मजबूर हो जाते हैं।

मीनल: बात केवल मात्र इतनी है कि, यूं तो हर किसी को ही अपनी जगह से अपनी जिम्मदारियों को पूरा करना होता है, और हम सभी अपने काम और उससे जुड़ी चुनौतियों से निपटने के लिए भी हम तत पर भी हैं। पर अपनों से मिले प्रोत्साहन एवं सहानुभूति से हर काम आसान हो जाता है।जैसे भरी गर्मी में रसोई घर में घंटों लगा कर बनाए गए पकवानों को जब सब लोग शौक से खाते हुए कुछ तारीफ के जुमले बोल देते हैं, तो मानो सारी मेहनत सफल हो जाती है। वहीं यदि कोई खाना खाकर यह कह कर उठ जाए कि, “रोज-रोज बोलना क्या है, यह तो तुम्हारी ड्यूटी है”….

इस तरह के बोल हिम्मत ही तोड़ देते हैं।

नैना: ड्यूटी?? हा हा हा हा हा हा……..

विवाह के दौरान मैरिज रजिस्ट्रेशन के साथ-साथ किसी बांड पर भी हस्ताक्षर करवाए थे क्या कि आज रानी महारानी बनकर फोटो खींचवाओ और कल से ही घर के सारे super woman की तरह संभाल लो।

(दोनों ज़ोर से हँसने लगी।)

नैना: अच्छा सुन, कभी सोशल मीडिया पर अपने बाकी सहेलियों की तस्वीरों को जरा ध्यान से देखना, उन चमकते चेहरों के भीतर का दर्द केवल वही जानता है जो उस दर्द को वास्तव में सह रहा होता है।

और ये भी जरूरी नहीं कि हर बार शारीरिक चोट का ही दर्द हो कभी-कभी अपनी इच्छाओं को मार मार कर जो घाव वह अपने भीतर बना चुकी होती हैं वह समय के साथ-साथ नासूर बनकर सताते हैं।

मीनल: कभी सोचा है महिला दिवस, मातृत्व दिवस, महिलाओं के लिए नौकरियों में आरक्षण, सरकारी वाहनों में अलग से स्थान, विशेष पुलिस सहायता कार्यक्रम आदि की आवश्यकता भला क्यों है?

पुरष दिवस जैसा कुछ क्यों नहीं होता?

क्योंकि नारी की अध्य शक्ति के रूप में पूजा करने वाला यह समाज उसका अपमान करने का कोई मौका नहीं छोड़ता और न ही किसी भी तरह से उसकी मर्जी से उसे जीने नहीं देना चाहता।

नैना: चलो! ज़रा यह सोच कर देखो कि मेकअप किट में कंसीलर की आवश्यकता क्यों होती है भला?

क्योंकि युवावस्था तक जो आंखें प्राकृतिक रूप से चमकती और बतियाती थीं, उन्हीं आंखों के चारों ओर आज जो तनाव और अनिद्रा से उभरे काले घेरे हैं, उन्हें तो कंसीलर ही तो छिपाएगा ना।

हा हा हा हा हा हा……..(दोनों सहेलियाँ व्यंग्यात्मक रूप से हंस पड़ी)

मीनल: मेकअप की आड़ में अपनी डेंटिंग पेंटिंग करके, महंगी साड़ी और कीमती गहनों से सजाकर घर की लक्ष्मी को फिर किसी समारोह की रौनक बनने को तैयार भी तो होना होता है।

हा हा हा हा हा हा……..(दोनों फिर एक बार खिलखिला कर हंस पड़ी और अपनी हंसी के माध्यम से एक-दूसरे को सहर्ष संघर्ष करने की प्रेरणा देती रही।)

ऐसा नहीं है कि जीवन में कोई सुखी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि हमारे दांपत्य जीवन में प्रेम नहीं है, पर सबसे बड़ी बात यह है कि प्रेम और भावनाओं की आड़ में हमारे स्वाभिमान का निरादर नहीं होना चाहिए क्योंकि हर व्यक्ति को अपने अनुसार जीने का पूर्ण अधिकार है और हर किसी को अपने लिए कुछ स्थान ज़रूर मिलना चाहिए।

हमें परिवार, रिश्ते नाते और यहां तक कि दोस्तों की भी आवश्यकता है ही, पर इसका मतलब यह तो नहीं कि हम अपनी निजी जिंदगी को पूरी तरह समर्पित करने के बावजूद भी अपमान के हक़दार हैं। और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि हम हर तरह से पुरुष के बराबर होने के बावजूद भी सामाजिक मापदंडों में पुरुष से कमतर मानी जाती हैं।

इन सब भेदभाव और दुनिया भर के उतार-चढ़ाव के बावजूद अगर कोई चीज है जिसके दम पर महिलाएं हर कष्ट सहने के बावजूद मुस्कुरा कर फिर हर खुशी का अभिनंदन करती हैं वह है उनका अपना आत्म बल, स्वाभिमान और आत्मविश्वास। इस बात को मैंने अपनी कुछ पंक्तियों द्वारा सजाने की कोशिश की है,

 3. तुम बिन*

मैं जी नहीं पाऊंगी तुम बिन 
हां जी नहीं पाऊंगी तुम बिन।

चाहे रिश्ते हजार मिल जाए,
पर साथ ना कोई भी तुम बिन,

चाहे नाम अनेकों पड़ जाऐं,
पहचान नहीं मेरी तुम बिन,

चाहे काम पहाड़ से बढ़ जाऐं,
पर शक्ति नहीं होती तुम बिन,

चाहे वक्त बहुत कम रह जाए,
पर मूल्य नहीं मेरा तुम बिन।।

यह तय है, मेरा अनुभव है, 
मैं जी नहीं पाऊंगी तुम बिन...
तुम! 
कौन हो तुम ?

तुम मेरी हस्ती का कारण हो,
तुम मेरा स्वाभिमान भी हो।

तुम मेरे अंदर दहक रही,
प्रकाश पुंज की ज्वाला हो।

मैं नारी हूं और और शक्ति भी,
तुम मेरा आत्म संभल हो..

तुम मेरा संयम कोष भी हो, 
और ममता की नौ निधि धारा भी..

 तभी....

चाहे कोई साथ ना रह पाए, 
पर साथ मेरे तुम हो हर क्षण।

चाहे युद्ध अनेक हों जीवन में,
पर स्नेह  तुम्हीं से है हर क्षण।

चाहे कोई पुकार न सुन पाए, 
तुम सुनते रहते हो हर क्षण।

चाहे मन न कहीं भी बहल पाए,
दिल को समझाते तुम हर क्षण।

तो ये तय है, मैंने देखा है, 
मैं जी नहीं पाऊंगी तुम बिन 
मैं जी नहीं पाऊंगी तुम बिन...

 

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

Hello Everyone, Thank you for being with Digital Magazine "Prerna ki Awaaz"... (An inspirational bilingual magazine for the unique journey of life of self-reliant & liberated world...) आत्मनिर्भर और मुक्त विश्व की अनूठी जीवन यात्रा के लिए एक प्रेरणादायक द्विभाषी पत्रिका... "प्रेरणा की आवाज़" के साथ बने रहने के लिए आपका हार्दिक आभार...

89 Comments

Add a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *