MyPoems: ख्वाब

हमने बनाया था ख्वाबों का गुलिस्तां,

जहाँ जस्बातों की सतह पर प्यार के गुल खिले थे

अपनेपन और इज़्ज़त के दरख्तों पर सुकून के रसीले फल लदे थे

महक रहा था गुलज़ार अरमानों का

मोहबतों के झूले बंधे थे

उन झूलों पर झूलती मैं

उन झूलों पर झूलती मैं, अपनी हर खवाहिश कि नुमाइश करती, ऊँचे ऊँचे तेज़ भर्ती थी।

अपने वज़ूद पर इतराती, अपना अक्स झील में देखा करती….

अरे ! उस झील का ज़िक्र क्यों छूट गया…..

जिसके पानी में प्यार बहता था।

वो प्यार जो अहम है  मेरा

जिसमें मैं ही मैं झलकती हूँ

प्यार ऐसा की जिसकी आघोष में मेरे सारे एब छुप गए हैं कहीं।

ख्वाब तो ख्वाब हैं, हकीकत तो नही

हकीकत इतनी खुशनुमा नही होती

यहाँ सब पर मैं नही

मेरा वज़ूद हारा सा, बेमाने सा अपनी ख्वाबों की टोकरी उठाये  भटक रहा है यहाँ वहां…. ….

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

Hello Everyone, Thank you for being with Digital Magazine "Prerna ki Awaaz"... (An inspirational bilingual magazine for the unique journey of life of self-reliant & liberated world...) आत्मनिर्भर और मुक्त विश्व की अनूठी जीवन यात्रा के लिए एक प्रेरणादायक द्विभाषी पत्रिका... "प्रेरणा की आवाज़" के साथ बने रहने के लिए आपका हार्दिक आभार...

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