क्यों खेला जाता है गरबा!!

गरबा की धूम

नवरात्रि के दिनों में गरबा की धूम अलग ही रौनक जमाती है। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो नवरात्रि का इंतजार ही इसलिए करते हैं क्योंकि इस दौरान उन्हें गरबा खेलने, रंग-बिरंगे कपड़े पहनने की अवसर मिलेगा।

गुजरात

भारत का पश्चिमी प्रांत, गुजरात तो वैसे ही गरबे की धूम के लिए अपनी अलग पहचान रखता है लेकिन अब तो भारत समेत पूरे विश्व में नवरात्रि के पावन दिनों में गरबा खेला जाता है।

गरबा खेलने की शुरुआत

ये सब तो बहुत कॉमन बातें हैं जो अमूमन सभी लोग जानते हैं। गरबा खेलना और गरबे की रौनक का आनंद उठाना तो ठीक है लेकिन क्या आप जानते हैं कि गरबा खेलने की शुरुआत कहां से हुई और नवरात्रि के दिनों में ही इसे क्यों खेला जाता है?

गरबा और नवरात्रि का कनेक्शन

गरबा और नवरात्रि का कनेक्शन आज से कई वर्ष पुराना है। पहले इसे केवल गुजरात और राजस्थान जैसे पारंपरिक स्थानों पर ही खेला जाता था लेकिन धीरे-धीरे इसे पूरे भारत समेत विश्व के कई देशों ने स्वीकार कर लिया।

शाब्दिक अर्थ

गरबा के शाब्दिक अर्थ पर गौर करें तो यह गर्भ-दीप से बना है। नवरात्रि के पहले दिन छिद्रों से लैस एक मिट्टी के घड़े को स्थापित किया जाता है जिसके अंदर दीपक प्रज्वलित किया जाता है और साथ ही चांदी का एक सिक्का रखा जाता है। इस दीपक को दीपगर्भ कहा जाता है।

अपभ्रंश रूप

दीप गर्भ के स्थापित होने के बाद महिलाएं और युवतियां रंग-बिरंगे कपड़े पहनकर मां शक्ति के समक्ष नृत्य कर उन्हें प्रसन्न करती हैं। गर्भ दीप स्त्री की सृजनशक्ति का प्रतीक है और गरबा इसी दीप गर्भ का अपभ्रंश रूप है।

डांडिया

गरबा नृत्य में महिलाएं ताली, चुटकी, डांडिया और मंजीरों का प्रयोग भी करती हैं। ताल देने के लिए महिलाएं दो या फिर चार के समूह में विभिन्न प्रकार से ताल देती हैं। इस दौरान देवी शक्ति और कृष्ण की रासलीला से संबंधित गीत गाए जाते हैं।

गरबा का आयोजन

गुजरात के लोगों का मानना है कि यह नृत्य मां अंबा को बहुत प्रिय है, इसलिए उन्हें प्रसन्न करने के लिए गरबा का आयोजन किया जाता है।

ईश्वर की आराधना

हिन्दू धर्म में ईश्वर की आराधना करने के लिए भजन और आरती की जाती है जिसे सिर्फ पढ़ा नहीं बल्कि संगीत और वाद्य यंत्रों के साथ गाया भी जाता है। भक्तिरस से परिपूर्ण गरबा भी मां अंबा की भक्ति का तालियों और सुरों से लयबद्ध एक माध्यम है।

महत्वपूर्ण कारण

आपने देखा होगा कि जब महिलाएं समूह बनाकर गरबा खेलती हैं तो वे तीन तालियों का प्रयोग करती हैं। इसके पीछे भी एक महत्वपूर्ण कारण विद्यमान है। क्या कभी आपने सोचा है गरबे में एक-दो नहीं वरन् तीन तालियों का ही प्रयोग क्यों होता है?

त्रिमूर्ति

ब्रह्मा, विष्णु, महेश, देवों की इस त्रिमूर्ति के आसपास ही पूरा ब्रह्मांड घूमता है। इन तीन देवों की कलाओं को एकत्र कर शक्ति का आह्वान किया जाता है।

गरबा

इन तीन तालियों का अर्थ अगली स्लाइड्स में उल्लिखित है।

पहली ताली

पहली ताली ब्रह्मा अर्थात इच्छा से संबंधित है। ब्रह्मा की इच्छा तरंगों को ब्रह्मांड के अंतर्गत जागृत किया जाता है। यह मनुष्य की भावनाओं और उसकी इच्छा का समर्थन करती है।

दूसरी ताली

दूसरी ताली के माध्यम से विष्णु रूपी कार्य तरंगें प्रत्यक्ष रूप से मनुष्य को शक्ति प्रदान करती हैं।

तीसरी ताली

जबकि तीसरी ताली शिव रूपी ज्ञान तरंगों के माध्यम से मनुष्य की इच्छा पूर्ति कर उसे फल प्रदान करती है। ताली की आवाज से तेज निर्मित होता है और इस तेज की सहायता से शक्ति स्वरूप मां अंबा जागृत होती है। ताली बजाकर इसी तेज रूपी मां अंबा की आराधना की जाती है।

राजनीति और साहित्य

गरबा का महत्व केवल धार्मिक ना होकर इसे राजनीति और साहित्य के साथ भी जोड़ा गया है।

गुजरात की शान

आजादी से पहले गुजरात में नवाबों का राज था, उस समय गरबा केवल गुजरात की ही शान हुआ करता था। परंतु आजादी के बाद जब गुजरात के लोग अपने प्रदेश से बाहर निकले और अन्य स्थानों को अपना निवास बनाया तब धीरे-धीरे गरबा अन्य स्थानों पर भी आयोजित किया जाने लगा।

मां अंबा

आजादी से पहले गरबा नृत्य में केवल शक्ति स्वरूपा मां अंबा को समर्पित गीत ही नहीं बल्कि देश भक्ति से ओतप्रोत और साम्राज्यवाद विरोधी गीत भी शामिल किए जाते थे।

आज का गरबा

आज का गरबा नृत्य पूरी तरह पारंपरिक रूप लिए हुए है जिसमें राजनीति का स्वरूप बिल्कुल न्यूनतम या कहें ना के बराबर है। आप इसके व्यवसायिक स्वरूप को भी देख सकते हैं।

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

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