Best Hindi Poem: Nyari ye Prakriti hai…

न्यारी ये प्रकृति है…

जीवन की सतत धार से, प्रतिदिन की बंधी चाल से,

कभी समय मिले अगर, ज़रा ये मन बने अगर…

उस ओर चल पड़ा करो, वहीं जहाँ कोई न हो,

कोई डगर, नगर न हो, वहाँ किसी का डर न हो…

पर्वत जहाँ अडिग खड़े, उंचे गगन को चूमते,

मेघों का आँचल ओढ़के ठंडी हवा में झूमते…

झर झर गिरी से गिर रहा जलधार तीव्र वार सा,

रिम झिम फ़ुहार की तरह अनंत को भिगो रहा…

क्षितिज के रजत द्वार तक वनस्पति बिछी हुई,

धानी चुनर पे फूलों की ज़री बहुत निखर रही…

मेहकी हुई छटा यहाँ हर तार मन के छेड़ती,

बहती लहर भी हर पहर इक रागिनी सुना रही…

मंत्र मुग्ध स्तब्ध मैं, दूर किसी शिला पर,

देख ये छवि अतुल्य, भाव से विभोर हुँ…

कैसे गढ़ा, कैसे रचा, कैसे इसे गठित किया?

समय कि ताल पर इसे शनैः शनैः चला दिया!

अचंभ हूँ! निशब्द हुँ! आराध्य को करबद्ध हुँ,

अदभुत ये कलाकृति है, न्यारी ये प्रकृति है।।

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

Hello Everyone, Thank you for being with Digital Magazine "Prerna ki Awaaz"... (An inspirational bilingual magazine for the unique journey of life of self-reliant & liberated world...) आत्मनिर्भर और मुक्त विश्व की अनूठी जीवन यात्रा के लिए एक प्रेरणादायक द्विभाषी पत्रिका... "प्रेरणा की आवाज़" के साथ बने रहने के लिए आपका हार्दिक आभार...

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