Hindi Story: Humsafar for #StorytellersBlogHop

This post is written for #StorytellersBlogHop FEB 2021 hosted by Ujjwal Mishra & MeenalSonal.

एक कहानी: हमसफ़र

मुझे हर बार ऐसा लगता है कि “चाहत” को किसी भी दायरे में बाँधा नहीं जा सकता और ये चाहत का अनूठा भाव जीवन में अनगिनत बार अपना रंग जमाता है। यहां तक कि जब मन को कोई भा जाए तो आस पास की सभी अड़चनें बेमानी हो जाती हैं।

दुनियाँ में जितने भी कारणों से इंसान को इंसान से पृथक किया जा सकता है या जो सामाजिक भेद भाव के प्रतिक हों जैसे धर्म, जाति, रंग, शिक्षा का स्तर, आर्थिक स्तर या इस जैसे और जितने भी, ये सभी चाहत के कारण हमारे दिल, दिमाग और सोच के दायरे से कोसों दूर प्रतीत हो जाते हैं।

चाहत कि कल्पना मात्र से ही चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान पसर जाती है। और तो और चाहत के मधुर भाव से अंतर मन प्रफुल्लित हो उठता है। यहां तक की गौर से देखा जाए तो इस एहसास की कोई अवधि भी नहीं होती। हैरान मत होईए! ज़रा अपने जीवन की किताब के पन्ने फरोल कर देखिए आपको भी अपनी खूबसूरत चाहत के बेहतरीन एहसास के कई अनुभव हवा के झोंके की तरह छु कर निकाल जाएंगे और मन के परिंदे उड़ान भरने लगेंगे।

मुस्कुराए मत, मुझे यकीन हैं यह अनुभव हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। खैर….

यह उन दिनों की बात है, जब लोग रेलगाड़ी के स्लीपर कोच में सफर करते हुए भी जिंदगी भर के लिए बहुत सी यादें एकत्रित कर लिया करते थे। उन्हीं यादों के कुछ तार फिर अतीत को वर्तमान से जोड़कर सारी उम्र असीम आनंद का अनुभव देते नज़र आते हैं।   

आंध्रा प्रदेश के सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन पर नीलम अपने माता पिता और छोटे भाई अनुज के साथ हावड़ा, पश्चिम बंगाल की ओर जाने वाली गाड़ी का इंतजार कर रहे हैं। तिरुपति बाला जी के दर्शन के बाद अब कोलकाता भ्रमण की ओर अग्रसर चौहान परिवार अपनी यात्रा का भरपूर आनंद उठाते नज़र आते हैं। क्योंकि नीलम के पिता एक सरकारी बैंक में शाखा प्रबंधक के रूप में काम करते हैं, इसलिए हर चार साल में एक बार उन्हें जो परिवार के साथ भारत भ्रमण के लिए एल.टी.सी मिलता है न, उसी के चलते वे 20 दिन के बड़े ही योजना बद्ध कार्यक्रम के साथ दक्षिण भारत के कुछ स्थानों से यादें बटोरते अब अपनी यात्रा के आखरी पड़ाव कोलकाता की ओर बढ़े जा रहे हैं। यहां से अब हावड़ा तक का करीब 38 घंटों का सफर शुरू होने वाला है। 

ये जीवन भी कुछ ऐसे ही एक सफर की तरह होता है न, हम सभी को यह सफर अपनी निर्धारित अवधि में पूरा भी करना है। फिर जीवन वाले इस सफर में हमें जो हम-सफ़र मिलते हैं चाहे दोस्तों के रूप में, या रिश्तों की तरह, हम अक्सर अपने इन्हीं संबंधों से संतुष्ट नहीं रहते और उम्मीदों की दलदल में अपने सुकून को फसाए छटपटाते से रहते हैं। यही कारण है कि हमारे जीवन का यह सफर बहुत कठिन प्रतीत होता है।

नीलम द्वितीय वर्ष वाणिज्य की छात्रा है और साहित्य पढ़ने का बहुत शौक रखती है इसलिए, रेलवे प्लेटफॉर्म कि एक किताबों कि दुकान देखते ही कुछ नए साहित्य पढ़ने की जागरूकता लिए वह दुकान से कुछ किताबें पसंद करने लगती है। ट्रेन के सफर से पहले अगर एक आधा किताब ना ख़रीदी जाए तो सफर में भला क्या मज़ा आएगा ? किताब पसंद करते हुए अचानक नीलम का हाथ पास खड़े एक सफेद टी शर्ट और मिल्टरी हरी रंग की कार्गो पैंट्स पहने, कंधे पर लैपटॉप का बैग लटकाए लंबे कद और गहरे वर्ण के लड़के के हाथ से टकराता है और स्वाभाविकतः दोनों ही एक दूसरे की ओर देख कर माफ़ी मांगने का इशारा कहते हुए अपने हाथ पीछे कर लेते हैं।

स्टेशन पर हो रहे हल्ले गुल्ले और हॉकर्स की कभी ना भूला पाने वाली आवाज़ों के बीच नीलम और उसका परिवार अपने आने वाले दिनों में मिलने वाले आनंद की परिकल्पना कर चर्चा करते हुए आपस में अठखेलियां करते हैं। बातों ही बातों में नीलम देखती है कि वही किताबों की दुकान वाला लड़का कुछ दूर बिछी लोहे की कुर्सियों पर बैठा, हाथ में कोई पुस्तक पड़ते एक टक उसे ही निहार रहा है। नीलम भी एक आध दफा उसकी और देख कर अन-देखा करती है पर अगली बार नज़र मिलते ही वह मुस्कुरा कर नीलम का अभिनंदन करता है। अब तो नीलम भी चोरी चोरी उसे देखती रहती है और दोनों, न जाने कैसे पर आंखों ही आंखों में एक दूसरे की संगत पसंद करने लगते हैं। यहां तक कि कुछ खाने को खरीदते तो एक दूसरे को इशारों में पूछते, तो कभी अपनी अपनी किताब के प्रथम पृष्ठ की छवि दिखा कर किताब के बारे में इशारों में ही कुछ बताते। कभी नीलम अपनी कलाई पर बंधी घड़ी पर टाइम देख कर गाड़ी का इंतजार प्रस्तुत करती, तो कभी वह लड़का पंखे की ओर देखकर गर्मी का एहसास दिखता। देखते ही देखते दोनों में मानो एक सामंजस्य सा स्थापित हो गया था। 

उत्तर से दक्षिण भारत की ओर जाने पर भाषा और लोगों के वर्ण में इतना अंतर आ जाता है कि मानो किसी और ही दुनिया में आ गए हों। दक्षिण भारतीय लोग अपनी  मातृभाषा को इतना महत्व देते हैं की अधिकांश लोगों को हमारी राष्ट्र-भाषा हिंदी का अल्प ज्ञान भी नहीं होता। कुछ पढ़े-लिखे लोगों में अंग्रेजी का ज्ञान होने के कारण सामान्य संचार करना संभव हो पाता है परंतु फिर भी उत्तर भारत के लोगों के लिए यह आश्चर्य से कम नहीं है कि हिंदी जैसी सबसे सामान्य भाषा दक्षिण भारत के लोगों के बीच बिल्कुल प्रचलित नहीं है।

नीलम और उसका भाई, आसपास बैठे लोगों के आपसी संवाद सुनकर समझने की कोशिश करते हैं और हर बार कुछ भी ना समझ पाने पर एक दूसरे की ओर  देख कर हंस पड़ते हैं। जब ये लोगों की भाषा में से कुछ भी समझ पाने में असमर्थ हो जाते हैं तो अपने आनंद को और बढ़ाने के लिए उनकी आंखों और चेहरे के हाव-भाव से बात का अंदाजा लगा कर खुद ही अपना संवाद तैयार कर अठखेलियां करते हैं। 

खैर! इसी बीच गाड़ी की सीटी सुनाई पड़ती है और सारा परिवार अपने डब्बे की ओर बढ़ने लगता है। नीलम उस लड़के को गाड़ी में चढ़ने से पहले अलविदा का इशारा करती है और वह भी मुस्कुरा कर नीलम को हाथ हिला कर बाए कर देता है। 

कमाल की बात है ना, चाहत के इस रिश्ते में, ना मिलने की अपार खुशी थी और ना बिछड़ने की असीम पीड़ा। यानी यदि मन में भाव हों तो अनजान से अनजान व्यक्ति भी कुछ ही देर के लिए ही सही कुछ ही देर में अपना बहुत अज़ीज़ बन सकता है। निस्वार्थ भाव से, केवल चाहत के सहारे,…

यूँही मुस्कुराते हुए यदि जीवन के सफर को भी तय किया जाए, तो शायद कभी कोई तकलीफ़ महसूस ही न हो। 

       नीलम और उसका परिवार अब अपनी आरक्षित सीटों पर सेट हो गए थे। जब सारा समान सीटों के नीचे रख दिया गया, तब नीलम और उसके भाई अनुज के बीच अपनी अपनी सीटों को लेकर तनातनी शुरू हो गई और नीलम सबसे ऊपर की बर्थ पर अपना हक जताने में कामयाब हो गई। 

रेलगाड़ी के सफर में भी न अलग ही आनंद होता है। छोटे-बड़े स्टेशनों पर रुकती रुकाती हुई जब गाड़ी अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ती है, तो दिल में अनेक प्रकार की छाप छोड़ती जाती है। वैसे तो आज के आधुनिक युग में तकनीकी विकास के चलते लोग बड़ी राशि देकर कुछ ही घंटों में एक जगह से दूसरी जगह पहुंच जाते हैं, पर सफर के दौरान की कोई ख़ास मीठी याद या पहचान उनके जीवन का हिस्सा नहीं बन पाती।

           अभी दोपहर के 1 बजे थे, और दोपहर कर भोजन करने के बाद नीलम ऊपर की बर्थ पर जाकर लेट गई थी। छोटा भाई अनुज भी बीच की बर्थ पर पेट के बल लेटे, लोगों के गुजरने वाली गली की ओर मुंह किए, आते जाते हॉकर कि नकल उतार कर अपना और अपने परिवार का मनोरंजन करने लगता है। 

हॉकार : चाय बोलो चाय…. 

अनुज : चाssssयsss….. 

हॉकार : हां साहब कितना देने का….

अनुज : नहीं भाई मुझे नहीं चाहिए, वो तो आपने कहा चाय बोलो, तो मैंने बोल दिया, चाssssयsss 

ऐसा सुनते ही कूपे में उपस्थित सभी लोग ठहाके लगाकर हँसने लगते हैं, और तो और चाय वाले भाई को भी बच्चे की मीठी सी शरारत पर हंसी आ जाती है। अनुज की मां  अनुज को सख्त स्वर में चाय वाले भाई से क्षमा मांगने को कहती हैं और दोबारा ऐसा ना हो ऐसी हिदायत भी देती हैं। अनुज भी मां की बात मानते हुए चाय वाले भाई से माफ़ी मांगता है और वे भी झट से अनुज के बालों में हाथ फेरते हुए ‘नौ प्राब्लम’ कह कर आगे चल देते हैं।

     अब सभी यात्री अपनी अपनी बर्थ पर आराम कर रहे थे, तेज गति में लगातार चलती गाड़ी की कानों में पड़ती एक सी ध्वनि और खिड़की से आती ठंडी हवा के झोंकों से सभी मीठी नींद का अनुभव ले रहे थे। नीलम भी सबसे ऊपर की बर्थ पर गहरी नींद का अनुभव ले रही थी। कुछ समय बाद करवट बदलते हुए नीलम ने बर्थ के ऊपर लगी जाली में अपनी उंगलियों को फंसाया तो अचानक एक स्पर्श के साथ छोटी सी कागज़ की पर्ची अपनी उँगलियों में अटकी पाई। नीलम चौंक कर उठ बैठी और झटपट पर्ची खोली जिसमें अंग्रेजी में लिखा था “कैन वी टॉक?” नीलम की धड़कन बहुत तेज़ चलने लगी थी, तभी उसने पहले अपने माता पिता और भाई की ओर देखा, वे सभी सो रहे थे, फिर उसने धीरे से जाली के पार देखना चाहा तो क्या देखती है कि वही प्लेटफॉर्म वाला लड़का उस पार बैठा है। उसने फिर नीलम की और एक पर्ची बढ़ाई जिसमें फिर अंग्रेज़ी में लिखा था “माई नेम इज जॉन.”। अब नीलम के चेहरे पर अनायास ही मुस्कुराहट आ गई और उसने जॉन की ओर कुछ इस तरह मुंह बना कर देखा की मानो कह रही हो कि मेरे पास जवाब देने के लिए पेन और कागज़ नहीं है। जॉन हँसने लगा और जॉन को देख नीलम को भी हंसी आ गई। जॉन ने जाली में से नीलम की ओर पेन बढ़ाते हुए इशारा किया की अपनी हथेली पर लिखो मेरे पास भी कागज़ नहीं है। नीलम ने तुरंत पेन लेकर अपनी हथेली पर अंग्रेजी में अपना नाम लिखा और जॉन की ओर हाथ घुमा कर दिखाया। बस इसके बाद दोनों सारे रास्ते ऐसे ही लिख लिख कर या इशारों में वार्तालाप करते रहे। कभी जॉन अपने बारे में कुछ बताता तो कभी नीलम कोई बात लिखती। जॉन ने नीलम को बताया कि वह आंध्रा प्रदेश का रहने वाला है और तेलगु एवं अंग्रेज़ी भाषा ही समझता है। इसके अलावा उसने यह भी बताया कि वह भारतीय वायु सेना में कार्यरत है और हावड़ा अपने काम के सिलसिले से ही जा रहा है। 

अजब सी बात है ना उत्तर भारत की नीलम, जो हिंदी में दक्ष है और दक्षिण भारत का जॉन, जिसे हिंदी बिल्कुल नहीं आती, पर फिर भी बिना किसी शिकायत के एक दूसरे के साथ बड़ी खूबसूरती से वार्तालाप किए जा रहे हैं। और कुछ इस तरह अपनी बातों में गुम हैं  कि उन्हें आसपास की दुनिया की भी कोई खबर नहीं है। ऐसा हमारे सामान्य जीवन में क्यों नहीं होता? हम लोगों से उन चीज़ों की उम्मीद लगा कर विचलित होते रहते हैं जिसे पूरा कर पाना उनके लिए संभव ही नहीं होता। हम क्यों नहीं सोचते कि हर व्यक्ति विशेष की अपनी कुछ सीमाएं होती हैं ज्ञान की, संयम और धैर्य की, भाषा की, पालन पोषण एवं वंश की और यहां तक की अनुवांशिक सीमाएं भी होती हैं। ऐसे में हम खुद को संतुष्ट रखने के लिए सामने वाले की सीमाओं से बढ़कर उससे उम्मीद लगा बैठते हैं और यही कारण है कि आहिस्ता आहिस्ता हमारे व्यवहार में कड़वाहट और अनमनापन आने लगता है। 

जॉन और नीलम एक दूसरे से सिर्फ मुस्कुराहट बांट रहे थे कोई उम्मीद नहीं कोई शिकायत नहीं और तो और किसी तरह का कोई पहचान बोध भी नहीं दोनों ही नहीं जानते थे कि उनकी मंज़िल क्या है केवल इतना पता था कि जितनी देर पास हैं एक दूसरे के साथ मुस्कुरा कर अपना सफर तय करें। 

 जीवन के सफर में हम अपनी चाहत को अनेक तरह के बंधन में बांध लेते हैं।  बहुत  सी ख्वाहिशें कर बैठते हैं और उन ख्वाहिशों के पूरा न होने पर झुंझला उठते हैं। चाहत जितनी खूबसूरत होती है उम्मीद उतनी ही ज्यादा कष्टदायक होती है।  क्या हम एक दूसरे से निस्वार्थ, निष्काम, रिश्ता नहीं रख सकते? क्यों हम अपने सबसे क़रीबी लोगों के साथ ही सबसे बुरा व्यवहार करते हैं हम क्यों नहीं यह सोचते कि हमें अपने हमसफर के साथ इस सफर के अंत तक मुस्कुराकर चलने का प्रयास करना चाहिए? क्योंकि 1 दिन हम सभी को दुनिया की भीड़ से गुम हो जाना है और फिर शायद पीछे खड़ा व्यक्ति हमें कभी ढूंढ भी ना पाएगा। पीछे अगर कुछ रह जाएगा तो वह खूबसूरत यादें जो हमने एक दूसरे के साथ एकत्रित की हैं। 

इसी तरह हंसते बोलते सिकंदराबाद से हावड़ा तक की इतनी लंबी यात्रा अब समाप्त होने को थी। जॉन और  नीलम को कोई थकन, कोई परेशानी महसूस नहीं हो रह थी। देखते ही देखते हावड़ा स्टेशन आ गया और सामान समेटते,  भीड़ में से सम्भलते संभालते नीलम और उसका परिवार और…

जॉन रेलगाड़ी से हावड़ा स्टेशन पर उतर गए और एक आखरी आनन फानन वाली अलविदा के बाद जॉन दुनिया की भीड़ में गुम हो गया। जब तक नीलम के पिता कुली से भाव कर रहे थे नीलम बहुत दूर तक पैनी निगाहों से जॉन को ढूंढनी रही पर वह फिर नज़र नहीं आया। 

Note: इस कहानी में story teller द्वारा दिये गए सभी 6 genre सम्मलित किये गए हैं। यदि आपको यह कहानी पसंद आई हो तो आपकोे ये भी पसंद आयेगी।

Editorial Team (Prerna ki Awaaz)

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