क्यों खेला जाता है गरबा!!

गरबा की धूम नवरात्रि के दिनों में गरबा की धूम अलग ही रौनक जमाती है। बहुत से लोग तो ऐसे हैं जो नवरात्रि का इंतजार ही इसलिए करते हैं क्योंकि इस दौरान उन्हें गरबा खेलने, रंग-बिरंगे कपड़े पहनने की अवसर मिलेगा। गुजरात भारत का पश्चिमी प्रांत, गुजरात तो वैसे...

RITA SINGH, HER NAME IS HER IDENTITY

मेरी मां की जो सबसे ख़ास बात मुझे पसंद आती है, वो है उनका समाज में अपनी पहचान अपने स्वयं के नाम से बनाए रखना। वरना लोग महिलाओं को उनके पति के नाम से या ससुराल के सरनेम से ही पहचानते हैं। मुझे हर बार इस बात का गर्व...

Got Published

One of my poem got published in the monthly newsletter publised by Hindi House....

MyPoems: Maa

मां  रिश्तो के तो नाम कही है, पर मां होना आसान नहीं है  अपना हर एक ख्वाब भुला कर, खुश रहना आसान नहीं है  एक एक काम है मां के जिम्मे, समय सारणी सख्त बड़ी है हर पल काम में उलझे रहना, सज्जनों आसान नहीं है  माना यह एहसान...

MyPoems: मेरा चांद

मेरा चांद  अक्सर मेरी खिड़की से झांक कर, कुछ फुसफुसाता है मेरा चांद …. आधी अंधेरी रात से छुपता छुपाता, चांदनी मेरे मुख पर बिखर जाता है मेरा चांद….  मुझसे मेरी ही मुलाकात करा कर, अपने साथ खूब हंसता हंसाता है मेरा चांद….  मैं भी मायूसी में अमूमन मैं भी...

MyPoem: Sapne, The dreams of a woman

1. बीते कल के सपने मेरे वो सपने जुड़े थे तुमसे, तुम्हीं से मेरा ह्रदय जुड़ा था  तुम्हें जो पाया मन उड़ चला था, तुम्हीं से मेरा हर आसरा था  पर तुम्हें था प्यारा यह जहां सारा, ना मिल सका मुझे तुमसे सहारा  मैं छुप गई फिर निज दाएरों...

MyPoems: ख्वाब

हमने बनाया था ख्वाबों का गुलिस्तां, जहाँ जस्बातों की सतह पर प्यार के गुल खिले थे अपनेपन और इज़्ज़त के दरख्तों पर सुकून के रसीले फल लदे थे महक रहा था गुलज़ार अरमानों का मोहबतों के झूले बंधे थे उन झूलों पर झूलती मैं उन झूलों पर झूलती मैं,...

MyPoems: घर की धूल

घर की धूल *चमकती धूप में जब कभी देखा अपनी हथेली को, कम नहीं पाया किसी से भी इन लकीरों को, *कुछ कमी तो रह गई फिर भी नसीब में मेरे, ठोकरें खाता रहा मन हर कदम तकदीर से! *हर सुबह लाती है मुझमें, इक नया सा हौंसला, हिम्मतें...

MyPoems: मेरा अक्स

क्यूँ इतना मजबूर मेरा वजूद नज़र आता है ? उलझा उलझा बड़ा फ़िज़ूल नज़र आता है अपनी आँखों के बिखरते सपनों का क़तरा क़तरा ज़हर सा नज़र आता है हम ढूँढ़ते रहे जिन गलियों में खुद्की परछाई उन गलियों में अँधेरा ही नज़र आता है वो ख्वाहिशें जो उड़ती...