Self Motivational talks in an interesting poetry format
नमस्कार दोस्तों,
नमस्कार दोस्तों, कैसे हो आप?
कुछ देर समय हो तो मेरे साथ बताइए ना…
चलिए आज रमन की दुनिया में हम अपने कुछ अन-कहे जज्बातों को जान देने की कोशिश करते हैं।
आज केवल अपने अंदर की उन ताखों से जज्बातों को उठाएंगे जिन्हें सदियों से किसी ने हाथ तक नहीं लगाया।
“थक गए हैं इस कदर कि अब यह दर्द सहा जाता नहीं,
सुना है मौत बरपा है फिज़ा में कोई मेरा ही पता दे दो।।”
बाज़ औकात हम अपने आप से या यूं कह लीजिए कि अपने सिस्टम से इतना थक जाते हैं…
कि सब कुछ छोड़ जाने को मन करता है…
तो चलो अपने आपको थोड़ा रिलैक्स करो और मेरे साथ चंद लम्हों के लिए एक सफर पर चलो,
अपनी आँखें बंद करके कहीं आराम से बैठ जाहिए,
अपनी कुर्सी को थोड़ा अडजस्ट कर लीजिए और बस अपने आपको महसूस कीजिए….
तैयार हैं आप?
शुरू करें?
तो ठीक है फिर…
मैं जाना चाहता हूं…
मैं जाना चाहता हूं जहां…
खुले आसमान में आज़ाद परिंदों की तरह पंख पसारे, निश्चिंत और स्वच्छंद, हवा से बातें करते…
फिज़ा की महक को अपने अंदर समेटे हुए…
मानो अपने ही गौरव में उड़े जा रहा हूं…
उस और जहां डर का कोहरा ना हो,
लिहाज़ों का पहरा ना हो…
और कोई बेजान बंधन भी ना हो…
लो आज निकल ही पड़े हैं हम…
चले जा रहे हैं बहुत दूर एक लंबे सफर पर…
वहीं जहां से लौटना मुमकिन ना हो,
वहीं जहां इल्जा़मों का कहर ना हो।
कमबख्त सांसे भी ताल नहीं छोड़ती…
वक़्त की धुन पर थिरकते ही रहती हैं…
(बाज़ औकात जिंदगी बोझल सी मालूम पड़ती है)
तलाश…
तलाश है कि खत्म होने का नाम ही नहीं लेती
और उम्मीद (लोगों की हमसे) है….
इन उम्मीदों के बाद आँखें दिखाते, डराते से, सर पर मंडराते बेसुध सा कर जाते हैं…
फिज़ा में मानो पूरा सा छाया है
सामने कुछ भी दिखाई नहीं देता
उधर ख्वाहिशें है (खुद की)
ख्वाहिशें हैं कि बादशाहों की तरह हुकुम चलाया करतीं हैं….
और जमाना है कि जालिम की तरह कोड़े बरसाता दिखता है…
मन भाग जाने को करता है…
दूर… बहुत दूर…
कहीं वादियों में, शायद घाटियों में, पहाड़ों, बादलों, दरख़्तों के बीच, रिमझिम फुहार और चहचहाहटों के बीच…
वहां जहां कोई मुझे देख ना पाए
वहां जहां कोई मुझे देख ना पाए,
और मैं…
मैं जी भर के रो सकूं…
…जी भर के रो सकूं…
Coming up shorty with women’s only Motivational magazine SHE INSPIRES और हिंदी संकलन “हर स्त्री एक प्रेरणा”
इतना कि सारा सैलाब उमड़ आए और
खो जाए सावन में ही कहीं गुम हो जाए…
यहां कोई नहीं है समझने वाला…
यहां कोई भी तो नहीं है समझने वाला,
वहां कम से कम खुद ही की आवाज़ तो लौट कर दिलासा देगी…
शायद वहां पहाड़ों की चोटियों में खुद को खोल पाऊं मैं,
कम से कम वहां तो ऊंचाइयां मुझे छू पाएंगी…
यही सोचते सिसकते
यही सोचते सिसकियां भरते बढ़े जा रहे हैं…
और…..आ…..ह…उफफफफफ
पत्थर था शायद
आँख खुली और हम ख़्वाब से हकीक़त में आ गए
हम ख़्वाब से हकीक़त में आ गए….
ख़्वाब ही था शायद, ख़्वाब ही तो होगा
सच इतना आज़ाद कहां होता है।
सच ही तो है ना दोस्तों हकीक़त से आखिर कोई कब तक भाग सकता है
हर नया दिन एक नई उम्मीद के साथ तैयार खड़ा होता है
शाम की मायूसी के बाद भी, फिर से खिलखिलाता हुआ सवेरा ले आता है।
तो उठो और फिर अपने आप को तैयार करो
भाग जाना तो कोई इलाज नहीं
ज़ख्म है तो दर्द भी होगा ही…
दर हकीक़त में दर्द सहना ही पड़ता है…
और यह दर्द सह कर ही तो मजबूत होगी शख्सियत तेरी
वही कल जाकर मिसाल बनकर मशाल से उजाला बिखेर पाएगी…
(यही सच है कि हम सभी खास हैं कोई कम या ज्यादा नहीं होता)
तो ठीक है फिर
सूरज की नई किरणों को सलाम करते हैं
और एक गहरी सांस के साथ यह वादा करते हैं आज खुद से कि…
“उड़ान हौसलों की कम नहीं होने देंगे,
जोर जितना भी है हम लगा ही देंगे,
आखिर कब तक रुसवा रहेगी जिंदगी हमसे,
यकीन इतना तो है ही कि…
हवा खुद ही उड़ा के ले जाएगी।।”
Hummm
कैसा लगा इस सफर में…
आनंद आया ना
वह पलकों के किनारों पर जो हल्की सी शबनम छटा बिखेर रही है उसे वही जाने दो
आँख खुलने पर यह आपको अलग से हिम्मत देगी,
अपने आप को भुलाकर, सबके लिए जीने वालों,
कुछ लम्हें खुद के नाम भी कर लो,
जिंदगी की कठिन राह पर अपने ही साए को हमसफ़र बना सके तो यकीनन बड़ी बड़ी उलझने भी सुलझ जाएंगी।।


3 Comments
Kiran Bala
Comment
Bahut sunder
PraGun
खूबसूरत कविता
चलिए चलते है कहीं दूर, जहाँ सिर्फ हम हो और हमारे उड़ते स्वछंद ख्याल
Author/Editor
आपके अनमोल शब्दों के लिए बहुत बहुत शुक्रिया प्रगुन जी।